Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 12
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं; अंतिः नमो लोए सव्वसाहूणं, पद-५ (वि. प्रतिलेखक ने मात्र पांच पद ही लिखा है. ) नमस्कार महामंत्र-पंचपद बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनि माहरु; अंति: भणी सिद्ध वडा कही . ४८१६५. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५x१०.५, १५X४६). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि बंदी प्रणमी प्रेम अंतिः विनयविजय गुण गाय रे, गाथा - २१. २. पे. नाम. ज्ञाता अध्ययन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु पाय प्रणमी, अंति: लालविजय सुख थाय, गाथा - १२. ४८१६६. (+) परोपगार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २४.५X१०.५, ८x२८). औपदेशिक सज्झाव, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदिः करोड़ पर ऊपगार मुंकी, अंतिः सकल० सुधारस दीडवरे, गाथा-७ ४८१६७. सार वस्तु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५X११, -१X-१). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती चरण नमेव; अंति: रंग मनि धरो कल्लोल, गाथा - १६. ४८१६८. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२५x११, १४४४१). १. पे. नाम. नवधाक्रीया सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. साधुगुण सज्झाव, ग. मणिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः श्रवण कीर्तन सेवन ए अंतिः पदवी लहस्ये तेह, गाथा- ११. २. पे. नाम. रात्रीभोजन दोष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु, पद्य, आदिः सहइ गुरु चरण नमु निस, अंतिः मुगति कई अमर विमान, गाथा - १२. ४८१६९. समयसार नाटक भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X३६). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ६ तक लिखा है.) , , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१७०. ऋषभदेव चउत्रीसइ अतिसइ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. दयारत्न; अन्य. आ. हीररत्नसूरि (तपगच्छ); पठ. मु. जगसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४०). आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि; नाभिनरिंदमल्हार अंतिः अवर न कांइ इच्छिये ए गाथा - २१. ४८१७२. भावना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२४४१२, ११४३३). अध्यात्मभावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार, अंतिः करीने वंदना होजो. ४८१७३. जिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २४४११.५, १०X२४). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततां सौख्यमानंदकारि, श्लोक-१०. ४८१७४. गौतम स्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४.५X१२, १०x३१ ). गौतमस्वामी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभते नितरां क्रमेण श्लोक - ९. ४८१७५. चक्रेश्वरी अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मुक्तिविमल, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४९.५, १०x२५). 3 चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे, अंतिः चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक ९. " ४८१७६. उपधानतप मालारोपणोपदेश, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४४११, १२X४८). उपधानतप मालारोपणोपदेश, सं., पद्य, आदिः यस्याः स्यात् फलममृत, अंतिः माला परिधीयते धन्यैः श्लोक-१७. For Private and Personal Use Only

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