Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

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Page 51
________________ द्वितीय कल्लोलः ३६ दुष्ठं पापैबंलिभिः कोणाष्टगैः पच्चमनवमाष्टानामेकतमस्थैः कृत्वा चेदमीभिदृ ष्टौ मृत्युरित्यमुना प्रकारेण शस्त्रेणेत्यर्थः । चन्द्र रवौ वा योगस्थे बलिष्ठे शुभैर्युते दृष्टे वा न मृत्युः ।।५।। __ ग्रहण के समय लग्न में चन्द्रमा राहु और शनि हों, तथा पाठवें स्थान में मंगल हो तो माता के साथ बालक की मृत्यु हो। एवं लग्न में राहु, सूर्य शनि और बुध हों और मंगल पाठव में होतो माता के साथ बालक की मृत्यु शस्त्र से कहना । सूर्य क्षीण चन्द्रमा के साथ हो तो यह अरिष्टयोग का भंग नहीं होता । सूर्य और राहु अथवा चन्द्रमा और राहु लग्न में रहे को नवें, पांचवें या पाठवें स्थान में रहे हए पापग्रह देखते हो तो शस्त्र से बालक की मृत्यु कहना । उपरोक्त रवि, चन्द्रमा के योग रहने पर यदि साथ में शुभ ग्रह हो या उन पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो मृत्यु योग नहीं रहता ॥५॥ प्रथ योगान्तरमाह अङ्ग क्वब्जे खलैस्तेि दृष्टे वास्तेऽङ्गपे खलैः। व्ययेऽब्जेऽष्टाङ्गगैः पाप: सौम्यैनिकष्टकै तम् ॥६॥ अब्जे क्षीणचन्द्रऽङ्ग लग्नस्थेऽस्ते सप्तमस्थैः खलः कृत्वा पापैर्यु ते वा मासाद् मृत्युः वा अङ्गपे लग्नेशेऽस्ते सप्तमस्थे खलैदृष्टे मृत्युः । खलैरिति सहार्थे तृतीया । अब्जे क्षीणेन्दौ व्यये द्वादशस्थे पापैरष्टाङ्गगैरष्टमलग्नस्थैः सौम्यैनिष्कष्टकैः केन्द्र रहितैरन्यत्र गतैः कृत्वा द्रुतं शीघ्र मृत्युः ।।६।। लग्न में क्षीण चन्द्रमा हो और सातवें स्थान में पाप ग्रह हो तो एक मास में मृत्यु कहना। अथवा लग्न का स्वामी सातवें स्थान में हो, उसको पाप ग्रह देखते हो तो मृत्यु योग कहना । अथवा चन्द्रमा बारहवें स्थान में हो तथा पाप ग्रह लग्न में और आठवें स्थान में हो और केन्द्र में कोई शुभ ग्रह न हो तो बालक की शीघ्र मृत्यु कहना ॥६॥ . . अथ योगान्तरमनुक्तकालरिष्टस्य कालज्ञानमाह भान्तगेऽब्जे शुभादृष्टे पापै : कोणगतैलंघु । स्वभाङ्ग बलिभं प्राप्ते पापेक्ष्येऽब्जे समान्तरे ॥७॥ अब्जे चन्द्र भान्तगे यत्र तत्र राशौ स्थितश्चन्द्रस्तस्यान्तगे नवमांशस्थे शुभादृष्टे शुभैरदृष्टे पापैः कोणगतैः पञ्चमनवमयोरन्यतमस्थैर्लघु शीघ्र मृतिः । अब्जे चन्द्र यत्र तत्र राशौ स्थिते जन्माभूत् स राशिः स्वभं स्वराशिस्तं राशि प्राप्ते गते चन्द्र चारक्रमेण पापदृष्टे मृत्युः । कदा समान्तरे वर्षमध्ये। अथाङ्ग लग्नं प्राप्ते चारक्रमेण गते चन्द्र पापदृष्टे सति समान्तरे मृत्युः । तथा चन्द्र बलिभं प्राप्ते पापदृष्टे समान्तरे मृतिः । तद्यथा-यत्र रिष्टयोगे कालावधि!क्त "Aho Shrutgyanam"

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