Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

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Page 94
________________ ८२ जन्मसमुद्रः र्यस्य प्राणिनः सदृशः स प्राणी येन प्रकारेण बध्यते तेन सोऽपीत्यर्थः। तद्यथामेषवृषमिथुनकन्यातुलाकुम्भधनुषामेकतमे लग्ने सति धीस्वधर्मान्त्यगैः पापैः कृत्वा निगडैर्बध्यते । कर्कमकरसिंहानां मध्यादेकतमे लग्ने बन्धनं विना दुर्गे क्षिप्तो रक्ष्यते । वृश्चिकलग्ने भूमिगृहे बद्धो रक्ष्यते । एवं लग्नराशेः समाना बन्धता कल्प्या ।।१६।। पाप ग्रह की राशि का कोई लग्न हो, उसको पाप ग्रह देखते हों तो जातक खल्वाट होवे । एवं वृष राशि का लग्न हो और पाप ग्रह उसको देखते हों तो खल्वाट होवे । एवं धन राशि का लग्न हो उसको पाप ग्रह देखते हों तो खल्वाट होवे अर्थात् माथे पर बाल न होवे । यदि पांचवें, दूसरे, नवें या बारहवें स्थान में पाप ग्रह हो, लग्न राशि के स्वभाव तुल्य बन्धन कहना। अर्थात् लग्न की राशि मेष, वृष, मिथुन, कन्या, तुला, कुम्भ या धन हो और दूसरे, पांचवें, नव या बारहवें स्थान में पाप ग्रह हो तो रस्सी से बन्धन कहना । कर्क, मकर या सिंह राशि का लग्न हो और उपरोक्त स्थानों में पाप ग्रह हो तो किला में बन्धन कहना। एवं वृश्चिक लग्न हो तो भूमि गृह में बन्धन कहना ॥१६॥ अथ दुर्वाक् कुदृक् बहुरोगी एकाङ्गहीनो वा भवतीत्याह साारेक्ष्ये विधौ दुर्वाक् सोग्रेऽर्के कोणगे कुदृक् । एवं शनौ बहुव्याधिरेवं भौमेऽङ्गहीनकः ॥१७॥ विधौ कुचन्द्र साारेक्ष्ये पाकिः शनिः, पारो भौमः प्राभ्यां सह वर्तते युक्ते इत्यर्थः । अथवा ईक्ष्ये दृष्टे सति दुर्वाग् दुष्टा वाग् यस्य सोऽप्रियभाषीत्यर्थः । पुनरयं विशेषः-चन्द्र साकौ शनियुक्तेऽप्रियभाषी। चन्द्र सारे सभौमेऽप्यप्रियवादो । तथा चन्द्र शनिना भौमेन वा दृष्टे कर्कशवागित्यर्थः । अपस्मारेण वा मृत्युः । क्षयी वा । अथार्के कोणे नवमे पञ्चमे वा सोने उग्रौ पापौ कुजशनी आभ्यां युक्ते कुदृक् असारनेत्रः । एवं शनौ कोणगे रविकुजयुक्ते दृष्टे वा बहुव्याधिः । एवं कुजे कोणगे रविशनियुक्ते दृष्टे वा बहुव्याधिः। एवं कुजे कोणगे रविशनियुक्ते दृष्टेऽङ्गहीनो विकलाङ्गः ।।१७।। चन्द्रमा के साथ शनि या मंगल हो, अथवा चन्द्रमा को शनि या मंगल देखते हो तो जातक दुष्ट वचन बोलने वाला होता है। अथवा अपस्मार रोग से मृत्यु होवे। नवें या पांचवें स्थान में सूर्य हो, उसको पाप ग्रह-शनि और मंगल देखता हो या उसके साथ हो तो खराब नेत्र वाला होवे । एवं नवें या पांचवें स्थान में शनि हो, उसके साथ मंगल या सूर्य हो या उसको देखते हों तो अधिक व्याधि वाला होता है। एवं नवें या पांचवें स्थान में मंगल हो उसको सूर्य या शनि देखता हो या उसके साथ हो तो जातक अंगहीन होता है ॥१७॥ "Aho Shrutgyanam"

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