Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 589
________________ नलिन गाथाएँ नदीमें फिंकवा दीं। परन्तु नदीका प्रवाह उलटा हो जानेके क्रोध शान्त होनेपर प्रकार वह ग्रन्थ ८००० इसी ग्रन्थका नाम पीछे कारण उनमें से ४०० पत्र किनारेपर आ लगे। राजाने वे पत्र इकट्ठे करा लिये, और इस श्लोकसे केवल ४०० श्लोक प्रमाण रह गया। नलदियार पड़ा। नलिन -१. पूर्व विदेह एक बार गिरि (लोक २/३) २. उपरोक वक्षारका एक कूट तथा देव (लोक/५/४) । ३. अपर विदेहस्थ एक क्षेत्र । (लोक/५/२) ४. आशीष क्षारका एक फूट तथा देव (लोक/५/४) । १. रुचक पर्वतस्य एक फूट ३० लोक ३/१३१ ६. सौधर्म स्वर्गका आठवाँ पटल- दे० स्वर्ग/५/३१७. कालका एक प्रमाण (गणित / I / १ / ४) । नलिनप्रभ - ( म. पु / ५७/ श्लोक नं० ) पुष्करार्ध द्वीपके पूर्व विदेह में सुकच्छा देशका राजा था १२ ३१ सुपुत्र नामक पुत्रको राज्य दे दीक्षा धारण कर लो और ग्यारह अंगोंका अध्ययन कर तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध किया । समाधिमरण पूर्वक देह त्यागकर सोलहवें अच्युत स्वर्गमें हुआ।१२-१४ नलिनांगकालका एक प्रमाण- दे० गणित / I / १/४ । नलिना-सुमेरुपर्वतके नन्दन आदि वनोंमें स्थित एक भा० लोक /५/६ । नलिनावर्त - पूर्व विदेहस्थ नलिनकूट बहारका एक फूट व उसका रक्षक देव-दे० लोक /५/२.४ | नलिनी - सुमेके नन्दन आदि बनोंमें स्थित एक वाषी लोक २/ नवक समय प्रबद्ध दे० समय प्रबद्ध । नवकार मन्त्र दे० मन्त्र | नवकार व्रत- लगातार ७० दिन एकाशना करे। नमोकार मन्त्रका त्रिकाल जाप्य करे । ( व्रत विधान संग्रह / पृ. ४७ ) ( वर्द्धमान पुराण नवलसाहकृत ) । नवधा-सि उ/०६ कृतकारितानुमनने का मनोभिरिष्यते • नवधा । कृत कारित अनुमोदनारूप मन वचन काय करके नव प्रकार ( का त्याग औत्सर्गिक है ) । नवधाभक्ति- दे० भक्ति/२ । नवविधि व्रत - किसी भी मासकी चतुर्दशी से प्रारम्भ करकेचौदह रत्नोंकी १४ चतुर्दशी नवनिधिको नममी सनत्रयकी ३ तीज; पाँच ज्ञानोंकी ५ पंचमी, इस प्रकार ३१ उपवास करे । नमोकार मन्त्रका त्रिकाल जाप्य करे । ( व्रत विधान संग्रह / पृ. १२ ) ( किशनसिंह वाकया)। नवनीत नवनीतकी अमक्ष्यताका निर्देश Jain Education International - दे० भक्ष्याभक्ष्य / २ 1 ५८१ -- १. नवनीतके निषेधका कारण " 1 दे मांस / २, नवनीत, मदिरा, मांस, मधु ये चार महाविकृतियाँ हैं, जो काम मद ( अभिमान व नशा ) और हिंसाको उत्पन्न करते हैं। . . . अलहू विधातान्युकमाङ्गवेराणि नवनीत निम्बक केतकरयेममय फल थोडा परन्तु प्रस । ८५| हिंसा अधिक होनेसे नवनीत आदि वस्तुएँ छोडने योग्य हैं। पु. सि. उ. / १६३ नवनीतं च त्याज्यं योनिस्थानं प्रभूतजीवानाम् । = [ उसी वर्ण व जातिके ( पु. सि. उ./७१)] बहुतसे जीवोका उत्पत्तिस्थानभूत नवनीत त्यागने योग्य है । साध/२/१२ मधुवनीतं च मुचेापि भूरिशः । द्विमुहूर्तात्परं शरवर जराशयः । ११... नागश्री यंत्र साध/२/१२ में उत-अन्तमुहूर्तात्परत सुसूक्ष्मा जन्तुराशय मूर्च्छन्ति नाद्य तन्नवनीतं विवेकिभि |१| = १. मधुके समान नवनीत भी त्याग देना चाहिए; क्योंकि, उसमें भी दो मुहूर्त के पश्चात् निरन्तर अनेक सम्मानीय उत्पन्न होते रहते है | १२| २. और किन्हीं आचार्यों के मत से तो अन्तर्मुहूर्त पश्चात् ही उसमें अनेक सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते है इसलिए वह नवनीत विवेकी जनों द्वारा खाने योग्य नहीं है | १| नवमिका- रुचक पर्वत निवासिनी एक दिक्कुमारी देवी । - ३० लोक/२/१३ । नवराष्ट्र भरतक्षेत्र दक्षिण आर्यखण्डका एक देश-३० मनुष्य ४ । नष्ट - अक्षसंचार गणित में संख्याके आधारपर अक्ष या भंगका नाम मठाना 'नट' विधि कहलाती है दे० गणित/11/३/४ नहपान दे० नरवाहन । नहुष कलिंग देशके सोमवंशी राजा । समय - ई० ६१६-६४४ (सि. वि. / प्र./ १५ / पं. महेन्द्र ) । - - नाग - सनत्कुमार स्वर्गका तृतीय पट ३० स्वर्ग /२/३ | नागकुमार १. घ. १३/५.२.१४०/३११/० फणोपलक्षिता नागाः । - फणसे उपलक्षित (भवनवासी देव) नाग कहलाते हैं । २. भवनवासी देवोंका एक भेद है--३० भवन /१/४२. इन देवों के इन्द्रादि तथा लोक में इनका अवस्थान - दे० भवन २/२ ४/११ नागकुमार नागकुमार चरित विषयक तीन काव्य । १. मल्लिषेण (ई. श. ११) कृत । ५ सर्ग, ५०७ पद्य । (ती./३/१७१) । २. धर्मघर (वि. १५२१) कृत । (ती./४/५८) ३. माणिक्य राज (वि. १५७६) कृत । ६] सन्धि ३३०० श्लोक (ती./४/२३७) नागगिरि - १. अपर विदेहस्थ एक वक्षार दे० लोक /५/३२० सूर्य गिरि वक्षारका एक कूट । ३ इस कूटका रक्षक देव । --- -दे० लोक ५/४ ४. भरत क्षेत्र आर्यखण्डका एक पर्वत - दे० मनुष्य / ४ ॥ नागचंद - मल्लिनाथ पुराणके कर्ता एक कन्नड कवि । ई. ११०० । (ती./४/२००) 1 नागदत्त - यह एक साधु थे, जिनको सर्प द्वारा डसा जानेके कारण वैराग्य आया था (बृहत्कथाको कथा नं. २७) नागदेव"आप 'मयण पराजय' के कर्ता हरिदेव सूरिके ही वंशमें उनकी छठी पीढ़ी मे हुए थे। 'कन्नड भाषा में रचित उपरोक्त ग्रन्थ के आधारपर आपने मदन पराजय' नामक संस्कृत भाषाबद्ध ग्रन्थकी रचना की थी। समय- वि. श. १४ का मध्य । (ती./४/६२) । नागनंदिकवि अरुणके गुरु थे। समय नि० ० ११. (६० ० ११ का अन्त) (भ.आ./ प्र, २० / प्रेमी जी ) नागपुर - भरतक्षेत्रका एक नगर-३० मनुष्य ४ नागभट्ट - १. स्वर्गीय चिन्तामणिके अनुसार यह वत्सराज पुत्र थे। इन्होने चक्रायुधका राज्य छोनकर कन्नौजपर कब्जा किया था । समय - वि. ८७-८८२ ( ई०८००-८२५) । नागवर - मध्यलोकके अन्तमे पष्ठ सागर व द्वीप - दे० लोक / ५ / १ । नागधी (पा./सर्ग/स्टोक में.) अग्निमृति की पुत्री थी। सोमभूतिके साथ विवाही गर्यो ( २३/७६-८२) | मिथ्यात्वकी तोचता वश । (२३/८८) एक बार मुनियोंको विष मिश्रित आहार कराया | ( २३ / १०३ ) । फलस्वरूप कुष्ठरोग हो गया और मरकर नरकमे गयी । (२४/२-६)। यह पोदीका दूरवर्ती पूर्वभव है। दे० द्रौपदी। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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