Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ भगवान ऋषभदेव का मानव सभ्यता को योगदान - प्रो. नलिन के शास्त्री, दिल्ली भगवान् ऋषभदेव भारतीय चिन्तन-परम्परा के एक अत्यन्त उदार और उदात्त प्रतिरूप के रूप में उदित हुए हैं, जिन्होंने अपने अनूठे और मौलिक चिन्तन से उद्भूत दिशाबोध द्वारा पूरी सामाजिक-व्यवस्था को व्यवस्थित स्वरूप प्रदान कर उसे मानवीय सद्भाव की सूक्ष्म संवेदनाओं से स्पन्दित किया है, जिससे जन-जन स्फूर्त हुआ है। उन्होंने उस मानवीय सभ्यता एवं संस्कृति को प्रवृत्त किया, जो वर्धिष्णु है, सहिष्णु है और है जयिष्णु भी है और जो प्रकाश के मार्ग पर कर्मनिष्ठ होने से प्राप्त होने वाली संस्कार-सम्पन्नता को सम्प्राप्त करती है; एक समर्पित, निःशंक, निर्द्वन्द्व, अद्वैत चिन्तन- अवबोध के साथ। भगवान् ऋषभ की संबोधि में वे प्रक्रियाएं समाहित हुईं, जिनसे मानवीय समाज द्वारा विभिन्न चेतना केन्द्रों से सम्बन्धित सृजनात्मक जीवन के अर्थपूर्ण क्षण अद्भुत विस्तार पा सके। उन्होंने जीवन में साझेदारी की कला सिखाई, संस्कारजन्य भावनाओं को सुदृढ़ कर, आचार, व्यवहार, रहन-सहन, वेशभूषा, आर्थिक विकास, कला, शिल्प आदि का इस प्रकार प्रवर्तन किया कि वे दिशा-निबद्ध मर्यादा की कुशल साधना के पर्याय बन गये। उन्होंने मानवता को परिष्कृत कर उसमें सुविचारों के अंकुर उत्पन्न किये, जो कालान्तर में कल्पपादप का स्थान ले सके तथा जिनसे आन्तरिक भाव-तत्त्वों की परिष्कृत निर्मिति भी सम्भव हो सकी। सामाजिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु, सुसंस्कारों एवं सामाजिक दायित्वों तथा कर्तव्यों का परिबोध कराने एवं उनका सतत् परिष्कार कराने के उद्देश्य से, सामाजिक संस्थाओं की निर्मित कर, भगवान् ऋषभदेव ने मानवीय सभ्यता एवं संस्कृति के विकास की एक ऐसी एक इबारत लिखी, जो उन्हीं के द्वारा प्रतिपादित, षट्कर्म संस्कृति से पुष्पित एवं पल्लवित हुई। अपनी पुत्रियों को शिक्षित कर, नारी स्वातन्त्र्य एवं नारी सशक्तिकरण की दिशा में, एक नया प्रयोग, उन्होंने प्रवृत्त किया, जो आज अद्भुत विस्तार पा चुका है। भगवान् ऋषभदेव ने कृत्रिमताओं की इति की और विभावों का विसर्जन कर, जिस कलात्मकता को विकसित किया, वह अपने शुद्धात्म भावों से सर्वत्र एक सौन्दर्यशीलता का सृजन करती है और सम्पूर्ण भारतीय सांस्कृतिक क्षितिज पर, जीवन की गुण-सम्पन्नता एवं जीवन के प्रति सम्मान के भावों के अद्भुत बिम्ब भी विस्तीर्ण करती है, जिससे जन-जन सतत् स्फूर्त हो रहा है- आज भी। -9-5