Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
View full book text
________________ अर्थात् तेतीस व्यञ्जन, सत्ताइस स्वर (9 स्वरों के ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत तीन-तीन भेद मिलाकर) तथा चार योगवाह ये मिलाकर 64 मूल वर्ण होते हैं। सभी भाषाओं के लिए अंक निर्धारित हैं। सिरि भूवलय में 18 महाभाषाओं और 700 लघु भाषाओं का उल्लेख अनेक स्थलों पर आया है। इसमें पशु-पक्षियों, देव-नारकियों की भाषाएँ निकल आती हैं। एक अन्य स्थान पर इसमें कहा है कि - -सात सौ क्षुल्लक भाषाओं को गुणाकार पद्धति से 64 अक्षरों के साथ गुणा करने पर सुपर्ण कुमार (गरुड), गन्धर्व, किन्नर, किम्पुरुष, नारक, तिर्यञ्च, भील (पुलिन्द), मनुष्य और देवों की भाषा आ जाती है। वर्तमान में 284 देशों की भाषाओं के लिप्यन्तरण साफ्टवेयर बन चुके हैं। अर्थात् अंग्रेजी से निम्नांकित देशों की भाषाओं की लिपियों में अक्षरों को परिवर्तित करने की सुविधा उपलब्ध है। देखना है, हम इनका कितना उपयोग कर पाते हैं। आचार्य कुमुदेन्दु ने सिरिभूवलय की रचना अंकों में की है तथा उसकी रचना-पद्धति चक्रबंध-पद्धति रखी है। इसमें 60 अध्याय हैं तथा प्रत्येक अध्याय को पढ़ने की विधि अलग-अलग है। इसमें सरस्वती स्तोत्र, ऋषिमण्डल स्तोत्र, चौदहपूर्व, गणित, प्राणावाय, मध्यमपद, णिव्वाणभत्ति, समयसार, प्रवचनसार, तत्त्वार्थसूत्र, तत्त्वार्थाभिगम महाभाष्य, रत्नकरण्डक श्रावकाचार, कर्मदहन विधान, भूतवलीसूत्र, देवागम स्तोत्र, भरत स्वयम्भू स्तोत्र, चूड़ामणि, सर्वार्थसिद्धि, पूज्यपादकृत हितोपदेश, पात्रकेशरी स्तोत्र, कल्याणकारक, चौदहपूर्व गणित, मन्त्रबंभर स्तोत्र, ऋषिमण्डल स्तोत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, त्रिलोकप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, अंगप्रविष्ठ, अंगबाह्य और कुछ अद्भुत मन्त्रादि हैं। इसमें पाँच तरह की भगवद्गीता, जयाख्यान महाभारत, शिव-पार्वती गणित, ऋग्वेद, बाल्मीकि रामायण, गायत्री मन्त्र आदि हैं। प्राणावाय मध्यमपद में चमत्कारिक विधियाँ हैं। गणित पर तो यह ग्रन्थ पूर्णतया आधारित ही है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह महाग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है। इसमें अणुविज्ञान (फिजिक्स), रसायनशास्त्र (केमिस्ट्री), जीवविज्ञान (बायलॉजी), औषधशास्त्र (प्राणव्य और आयुर्वेद), भूगर्भशास्त्र (ज्योलॉजी), ज्योतिषशास्त्र (एस्ट्रोनामी) इत्यादि वर्णित हैं। कम्प्यटर में किया गया समस्त कार्य अंकों पर ही आधारित होता है और जो कुछ फीड किया जाता है वह डिजिट (अंकों) में बदल कर (बिनेरी सिस्टम से 01 आदि में) सुरक्षित रखता है, चाहे वह मैटर किसी भी भाषा में हो, उसे अंकों में ही बदलेगा और जब कम्प्यूटर पुनः खोलते हैं तो कम्प्यूटर अंकों में सुरक्षित उस सारे मैटर को पुन: उन्हीं भाषाओं में बदल कर प्रदर्शित करता है। यही प्रक्रिया इस ग्रन्थ में अपनायी गयी है। फर्क इतना है कि आज के कम्प्यूटर वैज्ञानिक यह कार्य करने में 13-14 भाषाओं तक ही सीमित है; जबकि अब से लगभग तेरह सौ वर्ष पूर्व रचा ग्रन्थ आज के कम्प्यूटर से सौ गुणित आगे है। यह भी धक कम्प्यूटर की प्रक्रिया से अंकों में लिखा गया और डिकोड कर 718 भाषाओं में अनेकों विषय-ग्रन्थ प्राप्त किये जा सकते है। भगवान् महावीर की वाणी द्वादशांगबद्ध मानी जाती है। द्वादशांग दृष्टिवाद अंग के पाँच भेदों में से चूलिका एक है। चूलिका में आश्चर्यप्रद सामग्री है। इसमें जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता के -174