Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti

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Page 209
________________ जैन प्रचारक, वीरवाणी, महावीर सन्देश, श्वेताम्बर जैन तथा अनेकान्त जैसे पत्रों का उदय हुआ। तृतीय युग (सन् 1948 से आज तक) इस युग में अहिंसावाणी, श्रमण, जैन भारती, सन्मति, कथालोक, सन्मति सन्देश, तीर्थङ्कर, सन्मति वाणी, शाश्वत धर्म, अणुव्रत, दिशाबोध, जिनभाषित, तित्थयर, वीतराग वाणी, तीर्थङ्कर वाणी, वीतराग विज्ञान, जैनपथ प्रदर्शक, अर्हत्वचन, शोधादर्श, समन्वय वाणी, अहिंसा महाकुम्भ, श्रमणोपासक, श्राविका, श्री अमर भारती, वीर निकलंक, धर्ममंगल तथा सम्यग्ज्ञान जैसी शताधिक पत्र-पत्रिकाएं अस्तित्व में आई। वर्तमान जैन पत्रकारिता स्वरूप और समीक्षा आज जैन पत्रकारिता का लगभग 125 वर्ष का लम्बा इतिहास है। अपने अल्प साधनों और सीमित क्षेत्र में रहकर मानव मूल्यों की प्रतिष्ठापना में उसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान में जैन समाज की विभिन्न भाषा- भाषी लगभग 450 जैन पत्र-पत्रिकाएं अस्तित्व में हैं। जैन गजट, जैन मित्र, जैन बोधक तो शताधिक वर्ष प्राचीन जैन समाचारपत्र हैं ही जिनका गौरवशाली इतिहास रहा है। वीर, जैन सन्देश, जैन जगत्, जैन प्रचारक, जिनवाणी, जैन प्रकाश, अहिंसा वाणी तथा अनेकान्त भी दीर्घजीवी पत्र-पत्रिकाएं हैं जिनका प्रकाशन निरन्तर जारी है। वर्तमान में शोधादर्श, तीर्थङ्कर, दिशाबोध, जिनभाषित, अणुव्रत, सन्मति सन्देश, श्रमण, प्राकृत विद्या, धर्म मंगल, पार्श्व ज्योति, वीतराग वाणी, समन्वय वाणी तथा अर्हत् वचन जैसी पत्र-पत्रिकाएं समाज को उनकी मानसिक खुराक देने में पूर्णत: समर्थ हैं। वर्तमान में दिगम्बर जैन समाज की ही शताधिक पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं जिन्हें दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- (1) संस्थागत, (2) व्यक्तिगत। निष्कर्ष जैन समाचार पत्र-पत्रिकाओं को चिन्तनशील लेखक वर्ग तैयार करने की ओर ध्यान देना आज के समय की आवश्यकता है। स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन पाठक वर्ग को आकर्षित कर सकता है। पाठक वर्ग का विस्तार उद्योगपतियों को विज्ञापन देने को आकर्षित करेगा, जिससे जैन समाचार-पत्रों को आर्थिक संकट से मुक्ति मिल सकेगी। बालवर्ग, युवावर्ग तथा महिलावर्ग की पत्रिकाएं समाज में नैतिक जागरण का कार्य बखूबी कर सकती हैं। पत्रकारों को शिक्षण-प्रशिक्षण के द्वारा कुशल पत्रकारों की श्रेणी में लाया जा सकता है। मीडिया प्रचार-प्रसार का सशक्त माध्यम है। समाज यदि इस दिशा में प्रयत्न कर अपना चैनल प्रारम्भ करे और उसमें सामाजिक गतिविधियों के साथ सन्तों/विद्वानों के प्रभावी प्रवचन, जैन कथानकों पर आधारित लोकप्रिय सीरियलों का निर्माण कर उनका प्रसारण करे तो नयी पीढ़ी में संस्कार दृढ़ होंगे, जिससे एक स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है। --

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