Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
View full book text
________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संभह, छठा भाग तीक्ष्ण शस्त्र के समान अग्नि को न स्वयं जलाता है. न दूसरे से जलवाता है.वही सच्चा भिक्षु है ! --- ' (३) जो पंखे भादि से हवा न स्वयं करता है न दूसरे से करचाता है, वनस्पतिकाय का छेदन न स्वयं करता है न दूसरों से करवाता है तथा जो बीज श्रादि सचित्त वस्तुओं का आहार नहीं करता है वही सच्चा साधु है।
(४) आग जलाते समय- पृथ्वी, तृण और काष्ठ आदि में रहे हुए त्रस तथा स्थावर- जीवों की हिंसा होती है। इसीलिए साधु प्रौद्देशिक (साधु विशेष के निमित्त से बनाया हुआ थाहार) तथा अन्य भी सावध आहार का सेवन नहीं करता ।जो. महात्मा भोजन को न स्वयं बनाता है न दूसरों से बनवाता है वही सच्चा भिन्नु है।
(५) ज्ञातपुत्र भगवान महावीर के वचनों पर श्रद्धा करके जो महात्मा छह काय के जीवों को अपनी आत्मा के समान मानता है। पाँच महानतों का पालन करता है तथा पाँचं पासवों का निरोध करता है वही सच्चा भिक्षु है। .
(६) चार कपायों को छोड़कर जो सर्वज्ञ के वचनों में दृढ़ विश्वास रखता है, परिग्रह रहित होता हुआ सोना,चाँदी आदि को त्याग देता है तथा गृहस्थों के साथ अधिक संसर्ग नहीं रखता वही सच्चा साधु है।
(७) जो सम्यग्दृष्टि है, समझदार है, ज्ञान, तय,और संयम पर. विश्वास रखता है, तपस्या, द्वारा पुराने पापों की निर्जरा करता है तथा मन, वचन और कायाको वश में रखता है वही सच्चा साधु है।
(E) जो महात्मा विविध प्रकार के अशन; पान, खादिम . और स्वादिम को प्राप्त कर उन्हें दूसरे या तीसरे दिन के लियेवासी न स्वयं रखता है न : दूसरे-से रखवाता. है.वही सच्चा साधु है।
(६)-जा साधु विविध प्रकार के अशन, पान, खादिम और.