Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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भी जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, छठा माग २६५ उसने नाव में इतने पत्थर भरे कि रेखाङ्कित भाग तक नाव पानी में हुब गई। इसके बाद उसने पत्थरों को तोल लिया । सभी पत्थरों का जो वजन हुआ वही उसने हाथी का तोल बता दिया । राजा उसकी बुद्धिमता पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे अपना प्रधान मन्त्री बना दिया।
(१०) घयण (मॉड)-एक भॉड था । वह राजा के बहुत मुँह लगा हुआ था। राजा उसके सामने अपनी रानी की बहुत प्रशंसा किया करता था। एक दिन राजा ने कहा-मेरी रानी पूर्ण आज्ञाकारिणी है । भॉड ने कहा-महाराज ! रानीजी आज्ञाकारिणी तो होंगी किन्तु अपने स्वार्थ के लिये । राजा ने कहा-ऐसा नहीं हो सकता, वह मेरे लिये अपने स्वार्थ को भी छोड़ सकती है। भाँड' ने कहा-आपका फरमाना ठीक होगा पर मैंने कहा है उसकी भी परीक्षा करके देख लीजिये। राजा ने पूछा-किस तरह परीक्षा करनी चाहिये ? उत्तर में मॉड ने कहा-महाराज ! आप रानीजी से कहिये कि मैं दूसरा विवाह करना चाहता हूँ। उसी को मैं पटरानी बनाऊँगा और उसके पुत्र को राजगद्दी दूंगा। __ राजा ने दूसरे दिन रानी से ऐसा ही कहा। राजा की बात सुन कर रानी ने कहा-देव ! यदि आप दूसरा विवाह करना चाहते हैं तो यह आपकी इच्छा की बात है किन्तु राजगद्दी का अधिकारी तो वही रहेगा जो सदा से रहता आया है। इसमें कोई भी दखल नहीं दे सकता । रानी की बात सुन कर राजा कुछ मुस्कराया । रानी ने मुस्कराने का कारण पूछा किन्तु असली बात न पता कर राजा ने उसे टाल देना चाहा । जब रानी ने बहुत आग्रह पूर्वक मुस्कराहट का कारण पूछा तो राजा ने मॉड की कही हुई वात रानी से कह दी। रानी उस पर बहुत कुपित हुई। उसने उसे देशनिकाले का हुक्म दे दिया। रानी का हुक्म सुन कर वह बहुत