Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जन सिद्धान्त चौल संग्रह, छठा भाग - १ काल और शक्ति का विचार कर, साधु प्रश्चन पौरन की रक्षा के लिये अन्य चाद-का भी प्राश्य ले सकता है। मंचकल्पपूर्णि में बतलाया है कि साधु को सभोगी मधु और पसरले मादि के साथ निष्कारण वाद-न करना चाहिने । साच्ची के साथ वाद करना तो साधु के लिये कतई मना है। (अष्टक प्रकरण १२ या वादाष्टक)(उचराध्ययन कमलमयमोपाध्यायवृत्ति अ १६ कर
. बाईसवाँ बोल संग्रह - ६१८-धर्म के विशेषण बाईल
साधुधर्म में नीचे लिखी बाईस बातें पाई जाती है. (१) केवलिप्रनाम-साधु का सच्चा धर्म,सर्वज के द्वारा कहा गया है। (२) अहिंसालवण-धर्म का मुख्य चिह अहिंसा है। (३) सत्याधिष्ठित-धर्म का अधिष्ठान अर्थात् प्राधार सत्य है । (४) बिनयमूल-धर्म का मूल कारण विनय है अर्थात् धर्म की प्राहि विनय से होती है। (५) शान्तिप्रधान-धर्म में क्षमा प्रधान है। (६) अहिरण्य सुवर्ण-साधुधर्म परिग्रह से रहित होता है । (5) उपशमप्रभव अच्छी तथा बुरी प्रत्येक परिस्थिति में शान्ति रखने से धर्म प्राप्त होता है । ( नवब्रह्मवर्य गुप्त-साधु धर्म पालने वाला सभी प्रकार से ब्रह्मचर्य का पालन करता है। (8) अपचमानसाधु धर्म का पालन करने वाले अपने लिये रसोई नहीं पकाते। (१०) भिक्षावृत्तिम साधु धर्म का पालन करने वाले अपनी
आजीविका मिक्षा से चलाते हैं। (११) कुनिशम्बर-साधु धर्म का पालन करने वाले आहार आदि की सामग्री उतनी ही अपने पास