Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
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(3) पूर्ण अनुसंधान और बहुत निवेदन करने पर एक मात्र प्राचार्य महाराज ही दीक्षार्थीकी योग्यता देखकर दीक्षा देते हैं।
(च) जिस दीक्षार्थीके माता पिता मौजूद हों ( चाहे दीक्षार्थीकी उम्र कितनी ही क्यों न हो) उनकी दीक्षा माता पिता के बार-बार अरज करने पर व लिखित अनुमतिसे जिस गांवका दीक्षार्थी हो वहां के पांच प्रतिष्ठित सजनोंकी लिखित साक्षीसे ही दीक्षा होती है।
(छ। विवाहित दीक्षार्थी होनेसे पति या पत्रीकी लिखित अनुमति बिना दीक्षा नहीं होती।
(ज) प्रकाश्य स्थान में जनसाधारणके समक्ष, पूर्व सूचित तिथि में दीक्षा दी जाती है।
उपरोक्त नियमोंके कारण इस संप्रदायकी दीक्षा श्रादर्श दीक्षा रूपमें सब कोई स्वीकार करते हैं।
(२४) उपरोक्त नियमोंके अतिरिक्त प्राचार्यों की बनाई हुई मर्यादा व नियमोंका पालन समस्त तेरापंथी साधु साध्वियोंको करना पड़ता है। किसी साधु साध्वीके नियम भङ्ग करनेपर प्राचार्य महाराज उसे उपयुक्त दण्ड प्रायश्चित देते हैं। दण्ड स्वीकार न करनेसे. उसे संघमें सामिल नहीं रखा जाता। नियमानुवर्तिताके प्रभावसे ही प्रायः ६.० साधु साध्वी पंजाबसे दाक्षिणत्य तक व कच्छ गुजरातसे मध्यप्रान्त तक विभिन्न स्थानोंमें एक सूत्रसे, एक शासनमें, निर्विवाद, एक आचार्यकी आज्ञानुसार विचर रहे हैं।
जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी साधुओंकी संख्या तेरापंथी सम्प्रदायमें सम्वत् २००० के अंत तक १७० साधु व ४२४ साध्वियाँ मौजूद हैं। उनमें चतुर्थश्राचार्यके समयमें दीक्षित १ साधु व १ साध्वी विद्यमान हैं। पंचम आचार्यके समयमें दीक्षित १ साधु व ४ साध्वियाँ विद्यमान हैं। षष्ठप्राचार्यके समयमें दीक्षित - साधु व ४ साध्वियों विद्यमान हैं । सप्तम श्राचार्यके समयमें दीक्षित : साधु व ५४ साध्धियाँ विद्यमान हैं। अष्टम आचार्यकै समयमें दीक्षित ८६.साघु व .
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