Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha

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Page 51
________________ ( ५० ) भिक्षा लेन हेत गृहस्थ घर जात भिक्षु, आगे कोऊ रोक भिक्षा लेवत दिखात है। ताही को उलंघ नहीं गृह में प्रवेश करे, मध्यजात ताको चित्त अंतर दुखात है। एती अंतराय भी न करे मुनिराज ताके, मनाही करना तो एक मोटीकसी बात है। तुलसी भनंत अंत तंत को विचार ऐसे, सोही इण काल प्रभु तेरापंथ पात है। ऐसी ऐसी व्यर्थ बात तान मत पक्षपात, करते हमेश ताकी बुद्धि जो बिगड़गी। ताकी सुन वाच नहीं साँच कूड़ जाँच करे, लोकन में एक लहतान प्रान बड़गी। एक भेड बोले भ्यां दूजी पिण बोले भ्यां, तीजी अरु चौथी सब भाज भाज भड़गी। तुलसी अनंत समझावे अब काको काको, सारे जिहान आतो कुए भांग पड़गी ॥ बाड़ो कोऊ खोले तामें करत मनाही कोई, वह साधु ना कसाई से भी नीच कहलात है । स्वेच्छा निज गेह लूटावे सब लोकन को, ताके कोई तेरापंथी प्राडो नहीं पात है। पात्र वो कुपात्र एक मात्र तोन करे तामें, खेतर अरु उसर सो अंतर बतात है। तुलसी भनंत अंत तंत को विचारे ऐसे, सोही इण काल प्रभु तेरा पंथ पात है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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