Book Title: Jain Sanskruti ka Rajmarg Author(s): Ganeshlal Acharya, Shantichand Mehta Publisher: Ganesh Smruti Granthmala Bikaner View full book textPage 7
________________ प्रकाशकीय श्रीमज्जनाचार्य पूज्य श्री गणेशलालजी म. सा. द्वारा दिये गये भनेक महत्त्वपूर्ण प्रवचनो मे जैन-सस्कृति से सम्बन्धित प्रवचनो का यह सग्रह "जन-सस्कृति का राजमार्ग" के नाम से प्रस्तुत करते हुए हमे हर्ष हो रहा है। इन प्रवचनो मे जैनधर्म के मुख्य-मुख्य सिद्धान्तो की सरल सुबोध भाषा मे विदेषना की गई है और जिनकी मौलिकता गभीरता एव विषदता का मूल्याकन पाठक स्वय कर सकेगे। प्राचार्य श्री के अनमोल प्रवचन जनमानस मे जैन सस्कृति की महत्ता का प्रचार करने मे सक्षम हैं, इसी भावना से प्रेरित होकर इस प्रवचन संग्रह के प्रकाशन मे निम्नलिखित विदुषी बहिनो ने प्रार्थिक सहयोग प्रदान किया है श्रीमती भूरीबाईजी सुराना, रायपुर ५००) श्रीमती उमरावबाईजी मूपा, मद्रास ५००) इसके लिए आप दोनो धन्यवादाई हैं और आशा है कि आपकी भावना से प्रेरणा लेकर अन्य बन्धु भी साहित्य प्रचार मे आर्थिक सहयोग प्रदान करेंगे। यहां यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि प्राचार्यश्री के प्रवचन साधु-भाषा मे होते थे। फिर भी प्रमादवश संपादक या सग्राहक द्वारा भाव या भाषा सम्बन्धी कोई भूल हो गई हो तो उसके उत्तरदायी संपादक या सग्राहक है और ज्ञात होने पर आगामी सस्करण मे सुधार हो सकेगा। पुस्तक की प्रस्तावना लिखने के लिए राजस्थान के जाने-माने साहित्यज्ञ श्री जनार्दनरायजी नागर के हम सघन्यवाद प्राभारी हैं । इस पुस्तक का प्रकाशन एक दूसरी दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है । पाचार्यश्री के प्रादर्शो के स्मरण को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये पाप धी को स्मृति मे स्थापित होने वाली 'श्री गणेश स्मृति ग्रंथमाला' का शुभाPage Navigation
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