Book Title: Jain Sanskruti ka Rajmarg
Author(s): Ganeshlal Acharya, Shantichand Mehta
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala Bikaner

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Page 45
________________ ४३ स्याद्वाद सत्य का साक्षात्कार स्पष्ट रूप से प्रादान-प्रदान करो। इस तरह जब सामूहिक रूप से व शुद्ध जिज्ञासा व निर्णय बुद्धि से सम्मिलित विचारविमर्श किया जायगा, उनका मन्यन होने लगेगा तो जरूर ही छाछ छाछ पदे मे रह जायगी श्रौर साररूप मक्खन ऊपर तैर कर था जायगा । तब स्याद्वाद का सन्देश है कि उन विचारधाराप्रो के समूह मे से असत्य प्रशो को निकाल कर अलग कर दो, हठवाद, एकान्तवाद चोर अपने ही विचारो मे पूर्ण सत्य मानने की दुराग्रही वृत्तियो को पूरे तौर पर तिलाजलि दे दो । इसके बाद सबको मस्तिष्क और हृदय की शक्तियो के सम्मिलित सहयोग से सत्य के भिन्न-भिन्न खडो का चयन करो उन्हें जोड़ कर पूर्ण सत्य के दर्शन को श्रोर उन्मुख होश्रो । सूंढ हो हाथी है, पांव ही हाथी है या पीठ ही हाथी है, मान सकते रहने से कभी भी हाथी का असली स्वरूप समझ मे नही प्रायगा बल्कि ऐसा हठाग्रह करने पर तो ऐसा मानना एकागी सत्य होने पर भी हाथी के पूर्ण स्वरूप की दृष्टि से प्रनत्य ही कहलाया । श्रत सिद्धान्तो घोर विचारो के क्षेत्र मे इसे गभीरतापूर्वक समझने व सुलझाने की जरूरत है कि सूंड ही हाथो नही है । पांव हापी नही है या पीठ ही हाथी नहीं है, बल्कि ये सब अलग-अलग हिस्से मिलकर पूरा हाथी बनाते हैं । श्राज उन ग्रघो की तरह हाथी देखने की मनोवृत्ति चल रही है - दया तो दार्शनिक क्षेत्र में घोर क्या वैचारिक क्षेत्र में उसे इस स्याद्वाद के प्रकाश मे सुष्ठु बना देने का श्राज महान् उत्तरदायित्व आा पड़ा है । क्योकि अगर वर्तमान में फैला हुआ विचार सघर्ष और अधिकाधिक जटिलता का जामा पहनता गया तो ग्राश्चर्य नही कि एक दिन पिछले युद्धों से भी अधिक खौफनाक युद्ध ससार व मानव जाति को विकसित विचारणीय सरकृति को बुरी तरह तहस-नहस कर डालेगा | विश्व शान्ति का प्रश्न धर्म, सभ्यता व संस्कृति के विकास तथा समस्त राशियों के हित का प्रश्न है । कोई भी व्यक्ति चाहे किसी भी क्षेत्र मे कार्य कर रहा हो, इस प्रश्न से प्रदश्य ही सम्बन्धित है । इस प्रश्न की सही सुलभन पर ही मानवता को वास्तविक प्रगति का मूल्याकन किया जा सकता है रवि गान्ति की नीव को मजबूत करने का श्राज की परिस्थितियो में

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