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जैन राजतरंगिणी
तस्मिन् संवत्सरे राज्ञा कारुण्याद् भूर्जगामिनी । उत्तमर्णाधमर्णानां व्यवस्था विनिवारिता || ३४ ॥
३४. उसी वर्ष राजा ने दया करके, उस वर्ष भोजपत्र पर लिखे, ऋणी एवं ऋणदाता की व्यवस्था को समाप्त कर दिया ।
चतुष्षष्टिकलाः शिल्पं विद्या सौभाग्यमेव च । दुर्भिक्षोपप्लवे सर्व
[ १ : २ : ३४-३५
तदाभून्निष्प्रयोजनम् || ३५ ॥
३५. उस दुर्भिक्ष के उपद्रव काल में ६४ कलाये', शिल्प, विद्या, सौभाग्य, सब कुछ निष्प्रयोजन हो गया था ।
चीड़ के वृक्ष से तेल लगाने के कार्य पर लगाया । पाद-टिप्पणी :
३५. (१) चौसठ कलाएँ : कला का वर्गीकरण उपयोगी कला एवं ललिती कला में किया गया है । उपयोगी कला व्यवहारजनित एवं सुविधाबोधी तथा ललित कला मन के सन्तोष के लिये है । उसमें मानसिक सौन्दर्य की योजना है, जो उपयोगितावाद से भिन्न है । कला एवं मानव का सम्बन्ध अवि - भाज्य है । मानव ने कला को विकसित किया है । कला से मानव ने आत्मचैतन्य एवं आत्मगौरव प्राप्त किया है ।
लोगों को काम पर लगाने के लिए उन्हें सरल अर्थात् (२०) काव्य समस्या पूर्ति, (२१) गायन, (२२) गुप्तभाषा ज्ञान, (२३) छलित नृत्य, घोखाधड़ी, (२४) जल क्रीडा, (२५) दैशिक भाषा ज्ञान, (२६) द्यूतविद्या, (२७) धातुकर्म, (२८) नर्तन, (२९) नाट्य, (३०) नाट्या ख्याइका दर्शन, (३१) पक्षी आदि लड़ाना, (३२) पक्षियों को बोली सिखाना, (३३) पच्चीकारी, (३४) पहेली बुझाना, (३५) (३८) बढ़ई कर्म, (३९) बालक्रीडा, (४०) बुझौवल, पाक कला, (३६) पुष्प शय्या, (३७) पुस्तक वाचना, ( ४१ ) वेत की बुनायी, (४२) भविष्य कथन, (४३) भाव को उलट कर कहना, (४४) माला, (४५) मालिश, (४६) मुकुट बनाना, (४७) रत्न परीक्षा, (४८) रत्नरंग परीक्षा, (४९) रस्साकसी, (५०) रूप बनाना, (५१) वशीकरण, (५२) वस्त्र गोपन, (५३) वादन, (५४) वास्तु कला, (५५) विदेशी कला ज्ञान, (५६) विशेषक, (५७) वेश परिवर्तन, (५८) (६१) सुनकर दुहरा देना, (६२) सूची कर्म, (६३) व्यायाम, (५९) शयन रचना, (६०) शिष्ठाचार, सूत कातना, एवं (६४) हस्तलाघव ।
कामसूत्र एवं शुक्रनीति ने कला को ६४ माना है । कला का वर्गीकरण कामशास्त्र तथा तन्त्र सम्बन्धी कलाओं में किया गया है। कामशास्त्र के अनुसार निम्नलिखित चौसठ कलाएँ है
(१) अंगरागादि लेपन, (२) अन्ताक्षरी, (३) अभिधानकोश ज्ञान, (४) अल्पना, (५) असुन्दर का सुन्दरीकरण, (६) आकार ज्ञान, (७) आकर्षण क्रीड़ा, (८) आभूषण धारण, (९) आयानक, (१०) आलेख्य, (११) आशुकाव्य कृया, (१२) इत्रादि सुगन्धि उत्पादन, (१३) इन्द्रजाल, (१४) उदक वाद्य, (१५) उपवन विनोद ( बागवानी), (१६) कठपुतली नृत्य, (१७) कठपुतली का खेल, (१८) कर्णाभूषण निर्माण, (१९) कलावत्तू केश मार्जन,
शुकनीति में दूसरी तालिका उपस्थित की गयी है
(१) आभूषण बनाना, (२) कपड़ा बुनना, (३) कताई, (४) कला मर्मज्ञता, (५) कला शिक्षण, (६) कृत्रिम उत्पादन, (७) कृषी, (८) क्षौर कर्म, (९) गजादि चलाना सिखाना, (१०) गजादि युद्ध,