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१:७ : १५९-१६३ ] श्रीवरकृता
२२१ भ्रात्रा समं जिघांसुर्मा बहामो द्वैधनिष्ठरः ।
अहमेकोऽबलस्तन्मे गतिः कान्या त्वया विना ॥ १५९ ।। १५९. 'भाई के साथ द्वेध निष्ठुर, बहराम खां मुझे मार डालना चाहता है। मैं अकेला एवं निर्बल हूँ, इसलिये तुम्हारे (राजा) बिना मेरे लिये कौन दूसरी गति है ?
नास्त्यस्मान्मे स्वजीवाशा तत् स्वात्मा रक्ष्यतां विभो ।
त्वयि जीवति राज्यस्थे भयं मम न विद्यते ॥ १६० ॥ १६०. 'इससे अपने जीवन की आशा नही है। अतः हे ! स्वामी !! अपनी रक्षा कीजिये, तुम्हारे राज्य पर स्थित रहकर, जीवित रहते मुझे भय नहीं है।
कुर्वन्त्यन्ये तदास्कन्दमद्यान्योन्यरणोद्यताः ।
इत्यादिवाः शृण्वन् स बभूव भयविह्वलः ॥ १६१ ।। १६१. 'आज एक दूसरे को लड़ाने के लिये उद्यत, अन्य लोग आक्रमण कर रहे हैं।' इस प्रकार का समाचार सुनकर, वह भयभीत हो गया ।
इत्थमादमखानेन कदाचिज्ज्ञापितो नृपः ।
ऊचे तं नास्ति मे लोभी राज्ये वा निजजीविते ॥ १६२ ॥ १६२. इसी समय इस प्रकार आदम खांन के कहने पर, राजा ने उससे कहा-'राज्य अथवा अपने प्राण के रहने से मुझे लोभ नहीं है।
गच्छ कापुरुषाव स्वं विघ्नार्थ किमिहागतः । इत्थं निर्भत्सितः पित्रा कुमदीनपुरीं गतः ।
अनुजास्कन्दभीतोऽभूत् स्वरक्षणकृतक्षणः ।। १६३ ॥ १६३. ' हे ! कायर पुरुष !! जाओ अपनी रक्षा करो। विघ्न के लिये क्यों यहाँ आये हो ?' इस प्रकार पिता द्वारा निर्भसित होकर, कुद्मदीनपुर' (आदम खान) चला गया और अपनी रक्षा हेतु सचेष्ठ होकर, अनुज के आक्रमण से भयभीत रहने लगा।
पाद-टिप्पणी :
१५९. कलकत्ता एवं बम्बई के शब्द 'विभामुम्' अर्थ की दृष्टि से कर्ता का विशेषण होता है । उसे 'विभांसु' होना चाहिए। पाद-टिप्पणी :
'कुद्द' के लिए 'कुद्म' पाठ मिलता है ।
१६३. (१) कूमदीनपुर : कुतुबुद्दीनपुर । 'आदम खाँ ने अपने बाप से इजाजत लेकर अपने
भाइयों से अलग-अलग रहकर कुतुबुद्दीनपुर में अकामत अख्तियार किया ( पीर हसन० : १८५ ) ।
सुल्तान ने आदम खाँ को कायर कहकर और सहायता करने से इनकार कर दिया। आदम कुतुबुद्दीनपुर चला गया और सावधानी से रहने लगा ( म्युनिख : पाण्डु० : ७६ बी० )।
फिरिश्ता लिखता है-राज्य की अवस्था बिगड़ती देखकर अमीरों ने गुप्तरूप से सन्देश भेजकर