Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 15
________________ अनुक्रमणिका १-प्रथम अध्याय पुद्गल की परिभाषा पृ०३-८ १. पुद्गल शब्द को व्युत्पति तया अर्य, पृ०५, २. पुद्गल की परिभाषा और व्याख्या, पृ० ५-६ २-द्वितीत अध्याय पुद्गल के लक्षणो का विश्लेपण पृ०९-४० १ पुद्गल द्रव्य है, पृ०६, २ पुद्गल नित्य तया अवस्थित है, पृ० ११, ३ पुद्गल अजीव है, पृ० १३, ४. पुद्गल अस्ति है, पृ० १३, ५. पुद्गल कायवाला है, पृ० १४, ६ पुद्गल रूपी है तथव मूर्त है, पृ० १५, ७ पुद्गल क्रियावान् है, पृ० १५, ८ पुद्गल गलन मिलनकारी है, पृ० २५, ६ पुद्गल परिणामी है, १० २६, १० पुद्गल अनन्त है, पृ० ३१, ११ पुद्गल लोक प्रमाण है, पृ० ३२, पुद्गल जीव-प्राह है, पृ० ३२, पुद्गल के उदाहरण, पृ० ३७; अन्य द्रव्य और पुद्गल के गुण, पृ० ३८ ३-तृतीय अध्याय . पुद्गल के भेद विभेद, पृ० ४१-५० पुद्गल का एक भेद, पृ० ४२, परमाणु तथा स्कघ, पृ० ४३, दो भेद-सूक्ष्म तथा बाहर, पृ० ४३, दो भेद ग्राह्य तथा अग्राह्या, पृ० ४४, तीन भेद-प्रयोग परिणत, मिश्र

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