Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 26
________________ पुद्गल कितना है? पुद्गल कहाँ है ? पुद्गल में परद्रव्य सम्बन्धी क्या गुण है ? जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल - अनन्त है' । १० - लोकप्रमाण है । ११ - ग्रहणगुणी है । जीव-ग्राह्य है । जीव का सुख-दुख जीविन-मरण, उपकारी है । शरीर-वाक्-मन-प्राणापण इन भेदवाद्विविध उपकारो को करता है । चार-चार १- दव्वण पोग्गलत्थिकाए प्रणताइ दव्वाह । -भगवतीसूत्र श० २ उ० १० २- खेत्तो लोएप्पमाणमेत्ते । ३ -सकषायत्वाज्जीव कर्मणो ४- शरीरवाडमन प्राणापाना जीवितमरणोपग्रहाश्च । - भगवतीसूत्र श० २ उ० १० योग्यान पुद्गलानादत्ते । - तत्त्वार्थसूत्र श्र० ८ सू० २ पुद्गलानाम्, सुखदुख --तत्त्वार्थ सूत्र श्र० ५ सू० १६ Pard

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