Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 44
________________ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल गलन का अर्थ अलग होना है। दूसरे शब्दो मे, पुद्गल सघबद्ध होता है तथा फिर अलग होता है। पुद्गल का प्रथम (कारण) स्वरूप परमाणु है। एक परमाणु पुद्गल का दूसरे परमाणु पुद्गल के साय म्पर्श होने से कितने ही नियमो में अनुवर्ती होकर कभी सघवद्ध (एकीभाव) होता है तथा मघवद्ध होकर फिर कभी भिन्न होता है। __ इस प्रकार उन्ही (मघात भेदादि स्निग्ध स्मादि प्रयोग विस्त्रमादि) नियमो के अनुवर्ती होकर एकाधिक अनन्त तक परमाणु पदुगलो के साय मघवद्ध (एकभाव) होता है अथवा सघवद्ध अवस्था से भेद होता है। परमाणु पुद्गलो का इस प्रकार बद्ध होना तथा भेद होना पुद्गल के पूरण-गलन स्वभाव से होता है। परमाणु पुद्गल इम प्रकार बद्ध होकर एकत्व रूप परिणमन करते है। इस एकभाव स्प का नाम स्कन्ध है', स्कन्ध समवाची है। __ परमाणु पुद्गल की तरह, एक स्कन्ध का दूसरे एक या एकाधिक स्कन्व के माथ वन्धन हो मकता है। उन्ही नियमो के अनुवर्ती स्कन्ध का भेद होने से केवल परमाणु रूप मे ही पृथक्करण नहीं होता, केवल स्कन्ध रूप में भी पृथक्करण हो सकता है तया स्कन्ध एव परमाणु ऐसे मिश्र रूप में भी पृथक्करण हो सकता १-कारण भेद तदन्त्य सूक्ष्मो नित्यश्चभवति परमाणु । . -तत्त्वार्यसूत्र ५ २५ का भाष्य । २-परिप्राप्तवन्ध परिणामा स्कघा । ---राजवातिकम् ५ . २५ १६

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