Book Title: Jain Me Chamakta Chand
Author(s): Kesharichand Manekchand Daga
Publisher: Kesharichand Manekchand Daga

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Page 6
________________ जैन में चमकता चाँद प्रथम मैं सर्व शक्तिमान् अन्तर्यामी परब्रह्म परमेश्वर को प्रार्थना करता हूँ कि जिस की आराधना करने से मेरे हृदय में पवित्र भावना उत्पन्न हुई है, जिसके बल पर आज में यह पवित्र पुस्तक लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ। प्रिय सज्जन वृन्द परमहर्ष के साथ लिखना पड़ता है कि जैन धर्म के शिरोमणि परमपूज्यवर जैनाचार्य श्री १००८ मुनिजी महाराज जवाहिरलालजी का चार्तुमास भीनासर में बड़े आनन्द पूर्वक हुआ है । यह बड़े भारी विद्वान् संस्कृत के पूर्णवेत्ता विद्या प्रचारक देशोद्धारक हैं। यह बड़े प्राश्चर्य की बात है कि मुनिजी महाराज की शरीर की परिस्थिति ठीक न होने के कारण छः वर्ष से अन्न प्रायः बहुत कम लेते हैं बहुधा दूध दही इत्यादि पर ही अपना निर्वाह करते हैं । रात दिन परब्रह्म परमात्मा के सत्य प्रेम में निमग्न रहते हैं यह जैन धर्म के अन्दर साक्षात् देव के तुल्य हैं । इनका स्वभाव अत्यन्त नम्र सरल पाणी अत्यन्त कोमल मधुर तथा उपदेश ऐसा मनोहर

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