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42 Rajmal Sodna gais
श्री वीतरागाय नमः
ॐ
जैन में चमकता चाँद
प्रकाशक
केशरीचंद माणकचंद डागा बीकानेर
सेठिया जैन प्रिंटिंग प्रेस बीकानेर में मुद्रित ता० १५-१२-२७
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श्री वीतरागाय नमः *
" जैन में चमकता चाँद
SHASSASSAGERSATEGSAOURSACRAZUATERMERCEPHAGEANCEATRIKA
बाइस सम्प्रदाय के जैनाचार्य । पूज्यवर श्री १००८ मुनिजी महाराज
जवहिरलालजी का स्तवन
प्रकाशक
केशरीचंद माणकचंद डागा बीकानेर
लेखक मास्टर जवाहरमल शर्मा शाकद्वीपी ब्राह्मण
भोजक बीकानेर विक्रम संवत्
द्वितीयावृत्ति
अमुल्य २००० प्रति కండACHARACTER
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प्रस्तावना दूसरी आवृत्तिकी
पहले इस जैन में चमकता चाँद नाम की पुस्तक पाठक गण के करकमलों में अर्पण की थी, उस में जल्दी से लेख में जितना विषय लिखना था उतना नही लिखा गया और ग्राहकों की उसी विषयकी पुस्तक माँगने की इच्छा देखी, इसलिये हम दूसरी घ्यावृत्ति प्रकाशित करते हैं। पाठकों को इसे पढ़कर के सन्तोष होगा इस में कुछ लेख बढ़ाया है और जैनाचार्य पूज्यवर श्री १००८ मुनिजी महाराज श्री जवाहिरलालजी के गुणग्राम के वर्णन हैं। आशा है कि उक्त घ्याचार्य महाराज का गुणानुवाद कर के आपभी अपना कर्त्तव्य पालन करेंगे ।
आपका शुभचिन्तक
मास्टर जवाहरमल शर्मा शाकद्वीपीब्राह्मण भोजक
बीकानेर
(राजपूताना )
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जैन में चमकता चाँद
प्रथम मैं सर्व शक्तिमान् अन्तर्यामी परब्रह्म परमेश्वर को प्रार्थना करता हूँ कि जिस की आराधना करने से मेरे हृदय में पवित्र भावना उत्पन्न हुई है, जिसके बल पर आज में यह पवित्र पुस्तक लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ। प्रिय सज्जन वृन्द परमहर्ष के साथ लिखना पड़ता है कि जैन धर्म के शिरोमणि परमपूज्यवर जैनाचार्य श्री १००८ मुनिजी महाराज जवाहिरलालजी का चार्तुमास भीनासर में बड़े
आनन्द पूर्वक हुआ है । यह बड़े भारी विद्वान् संस्कृत के पूर्णवेत्ता विद्या प्रचारक देशोद्धारक हैं। यह बड़े प्राश्चर्य की बात है कि मुनिजी महाराज की शरीर की परिस्थिति ठीक न होने के कारण छः वर्ष से अन्न प्रायः बहुत कम लेते हैं बहुधा दूध दही इत्यादि पर ही अपना निर्वाह करते हैं । रात दिन परब्रह्म परमात्मा के सत्य प्रेम में निमग्न रहते हैं यह जैन धर्म के अन्दर साक्षात् देव के तुल्य हैं । इनका स्वभाव अत्यन्त नम्र सरल पाणी अत्यन्त कोमल मधुर तथा उपदेश ऐसा मनोहर
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(२)
और आकर्षक है कि अन्य धर्मावलम्बी सहस्त्रों पुरुष श्रवण करने के लिए आते हैं। किसी भी अन्य मत का खण्डन नहीं करते। इन्होंने देशी विलायती का बिरादरी का कई वर्षो का झगड़ा कुछ समय में ही भीनासर में निर्णय करा दिया। अछूत जाति को उपदेश देकर मदिरा इत्यादि का भी त्यागन करा दिया इनके मुख्य शिष्य पंडित रत्नमुनिजी महाराज घासीलालजी तथा गणेशलालजी संस्कृत के अच्छे ज्ञाता तथा बाल ब्रह्मवारी हैं । इतने बड़े विद्वान होने पर भी विधा का अभ्यास अभी तक कर रहे हैं । और तप स्वीजी मुनिमहाराज सुन्दरलालजी ने दो मास का उपवास बड़े हर्ष के साथ किया । तपस्वीजी महाराज केसरीमलजी ने भी तीन मास और पाँच दिन का उपवास अत्यन्त आनन्द पूर्वक किया है। इतनी कठिन तपस्या करते हैं, जितनी कि कोई अन्य धर्मावलम्बी विरला ही करता होगा। धर्म उद्धार के लिए तन मन से पूर्ण प्रयत्न कर रहे हैं। वर्षा के अपवित्र वस्त्रों का निषेध करते हैं और बालविवाह और वृद्ध विवाह का भी निषेध करते हैं। देश सुधारक बातों का पूर्ण रूप से ध्यान रखते हैं। दबादान परोपकार अहिंसा को अपना मुख्य धर्म समझते हैं । गोरक्षा का भी उपदेश अत्यन्त देते हैं ।
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श्रीमान् श्रीजी साहय श्री १००८ महाराजाधिराज राजराजेश्वर नरेन्द्रशिरोमणि श्री मेजर जनरल हिज हाइनेस महाराजा श्री सर गंगासिंहजी बहादुर, जी. सी. एस. आइ.जी.सी.आइ.इ.जी.सी.वी.ओ.जी.वी. इ, के. सी.सी.वी.ए की सी.एल.एल.डी.की जय जंगल घर बादशाह, दी केपटिन हिज हाइनेस सर महाराज कुमार साहब श्री शार्दूलसिंहजी बहादुर श्री विजयसिंहजी बहादुर तथा दोनों भंवर साहबों की पूर्ण कृपा से देश में बड़ा आनन्द हो रहा है और प्रजा के आराम के लिये श्री जी साहब स्वयं अत्यन्त परिश्रम के साथ बहुत व्यय करके गंगानगर में नहर लाये है। इसका उत्सव बड़े आनन्द पूर्वक गतमास में मनाया गया था। जिसमें हिज एक्सीलेन्सी दी बायसराय गर्वनर जनरल ऑफ इंडिया पधारे और अनेक राजा महा. राजा और बडे २ अनेक ऊँचे २ पदाधिकारी आये जिनका स्वागत बडे प्रेम से हुआ। श्री चीफ मिनिस्टर सर दीवान साहब मनुभाई मेहताबड़ोदे से यहाँ पधारे हैं शहर की बड़ी उन्नति कर रहे है पूर्ण आशा है कि देश को बड़ा सुशोभित कर देंगे और प्रजा को अनेक फायदे पहुँचावेंगे परमेश्वर इन सर्व सजनों को सदैव आनन्द पूर्वक रखे और दीर्घायु करे ।
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श्री पूज्यजी महाराज का सदुपदेश श्रवण करने के लिए श्रीमान् कर्नल महाराजा साहब सर श्री भैरोंसिंहजी बहादुर के. सी. एस. आइ. तथा श्री चीफ मिनिस्टर दीवान साहब सर मनुभाई मेहता सहर्ष पधारे थे ।
और दूसरे भी उँच २ पदाधिकारी राजकर्मचारी प्रायः तमास सजनगण पधारे थे और महाराज श्री पूज्यजी का अमृतो पदेश सुनकर जो उनके हृदय सरोवर में प्रानन्द की उमंगें उठीं उन सबका बयान करने के लिए एक स्वतन्त्र पुस्तक की जरूरत है इस से स्वयं आप समझ सकते हैं। - कान्फ्रेन्स का अष्टम अधिवेशन बड़े समारोह के साथ पूर्ण हुआ है,जिस का वर्णन करने के लिए बड़ा समय चाहिये। समय का अभाव होने से लेख बढ़ ने के भय से कान्फ्रेन्स के महा उपकारी सिर्फ बड़े २ नेताओं का नाम मात्र लिखता हूँ कान्फ्रेन्स के सभापति श्रीमान् वाडीलालजी भाई गुजरात के रहने वाले थे, जोकि बडे धर्म प्रचारक विद्वान सज्जन हैं श्रीमान् नथमलजी चोरडिया नीमचवाले जोकि अपनी लाखों की धन सम्पत्ति का आनन्द न भोगकर और उस से अधिक सम्बन्ध नरखकर खादी के वस्त्र पहनकर देशो द्धार में लगे हुवे हैं। श्रीमान् मिलापचंदजी वैद झांसी
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वाले ने कान्फ्रेन्स के सम्पूर्ण व्ययकी जिम्मेवारी अपने ऊपर लोथी । श्रीमान् बाबू आनन्दराजजी सुराणा जोधपुर वाले कान्फ्रेन्स के प्रत्येक कार्य की सूचना इत्यादि देने वाले साहसी विश्वासी दृढ़ पुरुष हैं धर्मात्मा सत्यावलम्बी श्रीमान् कानीरामजी तथा बाहादुरमलजी बांठिया भीनासर वालों ने श्रीपूज्यजी महाराज के सदुपदेश से अछूतों के उद्धारणार्थ विद्याध्ययन के लिए पाठशाला खोलने का विचार किया है। धर्मार्थ औष धालय और पुस्तकालय भी खोल रक्खा है । मुनिजी महारज के चार्तुमास में जो सज्जन दर्शन करने के लिए बाहर से पधारे उनकेलिए प्रबन्ध अच्छा किया और स्वागत बड़े प्रेमभाव से किया इतने धनाढ्य होने पर भी कुछ भी अभिमान नहीं है । हरेक सज्जन से बडे प्रेम से वार्ता करते हैं। धर्म में अतिरूचि है। श्रीमान् आनन्दमलजी श्रीमाल धर्मसम्बन्धी सम्मति देने वाले तथा कोमलवाणी नम्र स्वभाव के सज्जन हैं । श्रीमान् हजारीमलजी मंगलचंदजी मालू धर्म सम्बन्धी सम्मति देने वाले तथा बड़े प्रेमी सज्जन हैं श्रीमान् सतीदासजी तातेड़ निष्पक्षपाती अत्यन्त नेक और धर्म में दृढ़ी हैं। जैन के एक और नेता श्रीमान् लक्ष्मीचंदजी डागा थे। जिन का अब स्वगवास हो चुका है।
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स्वधर्म के पूर्ण अनुकरणकर्ता तथा परोपकारी दानी पुरूष थे, जिन्हों ने धर्मार्थ औषधालय खोल रक्खा है। इन के सुपुत्र केशरीचंदजी तथा माणकचंदजी सेभी अनेक प्रकार की शुभ आशा हैं । प्रिय सज्जनों कहूँ। तक वर्णन करें यह जो कुछ भी शुभ चाह नाएँ उपरोक्त सज्जनों के उर में वर्तमान हैं, इन सब का प्रभाव श्रीपूज्यजी महाराज का सदुपदेश दृष्टिगोचर होता है। ऐसे सज्जनों की और समात श्रावकों की वृद्धि दिन २ दूनी हो और धर्म की उन्नति करें। अब मैं समस्त जैन भ्राताओं से प्रार्थना करता है कि समय व्यर्थ न खोवो । परस्पर प्रेम रखा। इतना घारनिद्रा में न सोवो । आलस्य को तजकर शुभ कार्य करी। धर्म में तनमन धन लगा दो। विद्याप्रचार करी । जिस सेदेश का उद्धार होवे और कल्याण होवे। जैन धर्म कोई एक छोटी सी बात नहीं है । यह अनादि काल का धर्म है। अपने २ धर्म में दृढ़ रहो, किसी की निंदा न करी । जैन धर्म एक ही है । शुभ कार्य करो, जिस से दुनिया में यश होवे । कारण यह मनुष्य जन्म फिर बार २ नहीं मिलता है। जहाँ तक हो सके एकता रक्खो। प्राचीन काल के झगड़ों की तरफ ध्यान मत देवा । इसतरफ अधिक ध्यान देने से धर्म को हानि पहुँचती है। देश
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भाव में न फंपी। ऐसा कोई सुमार्ग निकालो, जिप्तसे जाति का सुधार हो और धर्म की जय हो, महाशयो मैं कोई विद्वान नहीं हूँ मैं तो एकसाधारण मनुष्य हूँ प्रायः मैं सेठ साहुकार अमीरों के लड़कों को व्यापारिक सम्बन्धी अंग्रेजी तार लिखना पढ़ना बातचीत करना हिन्दी वानिका इत्यादि पढ़ाता है और तेरह चौदह घंटा लडकां को शिक्षा देता है और अपना निर्वाह करता है जैसे फिलहाल माईन्स विद्या वाले प्रत्यक्ष प्रमाण में जिस किमी वस्तु का निर्णय कर लेते हैं उस वस्तु को अंगीकार करने में और जग जाहिर करने में उनकी मनोवृत्तियों नहीं रूकती वैसे ही इनजनाचार्य पर श्री जवाहरलालजी महाराज के गणां के प्रति मेरे हृदय में भाव पैदा हुआ है उनका अंा मात्र उहार आप सर्व सजनो के कर कमला म अर्पा किया है अगर कोई लिखने छपने में न्यूनाधिक हुआ हो तो पाठकसमा प्रदान करें। श्रीमान लक्ष्मानंदजी डागा के सुपत्र केशरीचंदजी माणकचंदजी यह पुस्तक अमृल्म आपकी सेवा में भेट करते हैं जिमको पढ़ करके आप भी स्वधर्म के उद्धार करने में उपरोक्त मजनों का अनुकरण करेंगे।
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रागगजल
( तर्ज सीयाराम अयोध्या बुलालो मुझे )
मेरे पूज्यजी दर्श दिखादो मुझे
अपने चरणों का दास बनालो मुझे । शेर - पंच महाव्रत पालते. अरु करते उग्रविहार हैं जीव की रक्षा लिए करते रहे उपकार हैं
मैं तो आया शरण अबतारो मुझे ॥ मेरेपूज्यजी ॥ शेर - इस संसार सागर के अन्दर नाव डूबी जात है ।
तूही खिवैया है मेरा और तूही तारण तार है । तो करके दया मुनि तारो मुझे || मेरे पूज्यजी ॥ शेर -- नाम सुनकर आपका दर्शन को मैं आया यहाँ
व्याख्यान सुनकर मुनिका दिल में हर खाया जहाँ अब तो मुक्ति का मार्ग बतादो मुझे || मेरे पूज्यजी ॥ शेर- विद्यामें प्रवीणहो और ज्ञान के भंडारहे।
सत्यके समुद्र हो और दीन के उद्धार हो अब तो घोर दुःखों से बचादो मुझे || मेरे पूज्यजी ॥ शेर - सम्बत उगनीसे चौरासीयेका आश्विन शुक्ला दशमी
विनती करे जवाहरमल कबपारउतारसी अबतो चौमासेकी मेहर फरमादो मुझे || मेरे पूज्यजी ।।
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रागप्रभाती
( तर्ज घनश्यामजी की महिमा अपार )
है मेरे मुनिजी बड़े विद्वान, पूज्यजी की महिमा अपार । नगर बीकाना है गुलजार, जिसमें पधारे आप मुनिराज दर्शन को आवे संसार, भक्ति करोनी उतरो पार ॥ पूज्यजी ॥
नाम आपका जवाहिरलाल, सचमुच है ज्वाहिरातकी
खान
विद्या में ही पूर्ण विद्वान धर्म का किया है प्रचार । पूज्यज़ी ॥ श्रावक सब दर्शन को आयें, व्याख्यान सुनकर लाभ उठावें दिल में मग्न अति होजावें, अब शिक्षा को नहीं है पार || पूज्यजी ॥
सोमवार दिन मौनको धारें, प्रभु से हरदम ध्यान लगावें तपस्या में दिल खूब लगावें, करते हैं देशक- उद्धार ॥ पूज्यजी ॥
वृत्ति आपकी कठिन निराली, लोगोंको लगती अतिप्यारी दर्शन को आवे नरनारी, खादी का किया है प्रचार ॥ पूज्यजी ॥
शिष्य आपके परमरत्न हैं, संस्कृत में पूरे निपुण हैं
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(१०)
वाणी उनकी बहुत मधुर है, दया का करते हैं विचार ॥ पूज्यजी ॥ जवाहरमल गुण आपका गावे, दर्शन करके फिर सुखपावे सबभ्राताओं से प्रेम बढ़ावे, अव देशका करोनी सुधार
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॥ जीवदया की लावनी ॥
सुनो मित्रवर ध्यान कान एक अर्जी तुम्हें सुनाते हैं। जीवहिंसासे हुई जो हानि सो हम तुम्हें बताते हैं । जीवहिंसासे हुई बीमारी और जीवहिंमासे कालपड़ा। जीवहिंसासे हवापिगड़गई जीवहिंसासे जल बिगड़ा । . जीवहिंसासे खाड बिगड़गई जीवहिंसासे धी बिगड़ा। जीवहिंसा होगई भारतमें भारत होगयासड़ासड़ा । शोक है उन जो पुरुषों को पेटमें कयर बनाते हैं। .हिन्दू मतकी पुस्तक में देखो वहाँपै लिखी जीवदया। चारवेद उपवेदमनुस्मृति भी देती शिक्षा कसायोंको । भारतमें श्रीकृष्णचन्द्र ने किनी जीवों पै दयामया।। कोईकहताहै मांसखाने से विद्या बहुत आजातीहै । जवऐसाहै तोक्योंनहीं कुत्तियां मिडिल पास कराती है । कोई कहता है मांसखाने से बुद्धि बहुत बढ़ जाती है। .जबऐसा है तो क्यों नही बिल्ली जजसाहव बनजाती है।
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कोई कहता है मांस खाने से ताकत बहुत आ जाती है। जब ऐमा है तोक्यों नहीं लोमड़ी सिंह को मार भगाती है कोई कहता है मांस खाने से काम रती रूक जाती है। जब ऐसा है तोक्योंरंडी फिर नित नये यार बुलाती है। विना ज्ञान के मांसाहारी झूठी शंका लाते है।सुनो मित्र. घर०॥पंडित ब्रह्मन अनन्त मापको सत्य २ समझाते है
रागगजल
(तर्ज-दर्शन देना हो नंदलाल गौओं को चराने वाले) धन्य २ श्रेष्ठ मुनि ऋषिराज दर्शदे तक हरने वाले। अब से पूर्व मुनि छःवर्ष अन्न का त्यागन किया है सहर्ष रोज इस देश हेतु उत्कर्ष कर रहे हैं कार्य अनेक निराले ॥ धन्य॥ जय २ जैन धर्म के सूर पातक तिमिर विनाशो दर काम क्रोध तजि गहि मदचूर सत्य पथ पर चलाने वाले ॥ धन्य ।। कर २ धर्म का प्रचार देश का किया बड़ा उपकार ऋषिजी भले बने हितकार सोया हिन्द जगाने वाले ।धन्य॥
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मुनि नाम जवाहिरलाल सचमुच कोष जवाहिरलाल हो तुम विद्या के भंडार पंच महाव्रत पालने वाले ॥धन्य। करि है विनती वारम्वार स्नेही प्रेम बढ़ावो अपार हम हैं सेवक मुनि तुम्हारे चरण में शीश झुकाने वाले धन्य॥
रागप्रमाती
(तर्ज- जगमें तुमहो सहायकहमारा) जैनवर संकटकाटनहार हे मुनि सुमिर नाम जन थारे, कोटिक देवलोक पगधारे हमहुँतारि जगमाहिदुखारे, कहाँलगाईघार ॥जैनवर। महिमाअमितनाथ गुणकेरी किमिकरवर्णसके मतिमोरी अषमुनि मतकर हँ मुझदेरी नावपड़ी मझधार|जैनवर॥ हमदूसर उपायनही सूझा, है कृपालु जिनवर विनदूजा सयतजि करूभाव पदपूजा, तूहीनाम अधार ॥जैनवर।। हे मुनि क्यों जन त्रासहेराना, भवसागर से पारकरोना प्रणत हुँ वारम्बार ॥ जैनवर ॥ वारहिवार प्रणाम करेही तोहिजन लखिमस्नेही। हमपरहुँ मुनि कृपाकरेही नहीदोंवे भवभार॥ जैनवर ।।
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रागगजल
(तर्ज- मेरे पूज्यजी दर्श दिखा दो मुझे) जगदुर्लभ दर्शन सन्त सखे, सतसंग सुगुण कहि वेद थके। शेर-गुणवान हो, मतिमान हो, मुनि सर्व गुण
सम्पन्न हो। तव दर्श के भागी हुए हैं मोरे नैना न्यिहो गुणगावत प्रेमस्नेही लखे ॥ जगदुम॥ शेर-नही जाने किस शुभ कम से भागी हुआ . ऋषिदर्श का।
दशन से सब कुच्छ पा लिया फिर क्या ठिकाना
हर्ष का। मुनि को सिद्धि सुरेश हमेश लखे ॥ जग दुर्लभ ॥ शेर-विद्याप्रचारक धर्म ग्राहक ब्रह्मचारी नाथ हो। पञ्चमहाव्रत पाल कर मुनि गावे जनगुण गाथ हो। व्रतपालन कठिन को वर्ण सके । जगदुर्लभ ॥ शेर-जोकुच्छ करे प्रचार जग में देश जाति-धर्म हिता
ऐसे तपस्वी सज्जन की सहायकरि है ईश नितः होकर सफल सुधारस सार चखे ॥ जगदुर्लभ ॥ ..
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शेर-शुभ नाम जवाहिरालाल मुनि का सच जवा
हिरात कोष है। शुचि सुयश धनवाणी, सदन छल छिद्र विन निर्दोष है। ऐसे सज्जनों को ईश बनाये रखे ॥ जगदुर्लभ ॥ .
रागाँड
(तर्ज- गौमाता करे पुकार प्रभुजी रक्षा किजो हमार) सब श्रावक करे पुकार मुनिजी रक्षा किजो हमार . मानुष्य तन पा करके जगमें बहुत किया उपकार. दे२के उपदेश सभी को देश का किया उद्धार सषश्रावक।। धर्म प्रचारक देशोद्धारक अन्तर्यामी हो आप । अब तो टेर सुनो मेरे मुनिजी क्यों नहीं हरते हो पाप ॥ सब श्रापक ।। देश विदेश के आवे यात्री लेते हैं धर्म का लाभ । परमपूज्यजी की मेहर हुवे जब देते पूरा ज्ञान |श्रावक॥ हम आये हैं शरण तुम्हारी रख लीजो मुनि लाज । भव सागर वीच आन फँसाहूँ क्यो नहीं उतारो पार ।।
॥ सब श्रावक॥
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(१५)
दद्यादान का रस्ता बता कर किया भारत में नाम। जवाहरमल गुण आपका गावे यही सनातन की राय॥ ॥सब श्रावक०॥
- OXAKOLe-- राग भैरवी ठुमरी
(तर्ज गौओं की मुनोपुकार) मेरेपूच्यकी महिमा अपार २ सुनलो मित्रोध्यानलगाय शेर- गतत्तुमास भीनासर कीना
दे २ उपदेश खुश करदीना दर्शन को आयेसरदीवान २ ॥ मेरेपूज्यकी ॥ शेर-कइसज्जन दर्शन को आये
दिलमें वे फिर बहु हरखाये सोया हिन्दको दिया है जगाय २॥ मेरेपूज्यकी ॥ . शेर--- अछूतोंको उपदेश दीना
मदिरा त्यागन उन्होने कीना । उनका किया है सुधार २।। मेरेपूज्यकी। शेर-- सबभावक दिलमें हरखावें
व्याख्यान सुनकर लाभ उठावें समाज को दिया अब तार २॥ मेरे पूज्य की
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शेर-अयोग्य विवाह भी निषेध करते
देशमति हितकार्य करते खादी का किया है प्रचार २॥ मेरे पूज्य की। शेर-जितने हैं भारत में भाई
गौरक्षाकी करलो तैयारी सनातन देता यही राय २॥ मेरेपूज्यजी ॥ श्री गंगासिंहजी है तप धारी महाराज कुमारों की है बलिहारी भैरूसिंहजी है बुद्धिमान २ शेर-जवाहरमल गुण आपका गावे
___ हरदम मुनिका ध्यान लगावे ग्रव चौमासा देवो नी फरमाय २॥ मेरेपूज्य की।
पुस्तक मिलने का पता
- चन्दनमल हस्तमल डागा
सेठियों कीगवाड़
घीकानेर ( राजपूताना )
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(अभिनंदनपत्रम्) हिन्द के नेता भारत माता के वीरपुत्र भीमान् पंडितजीमहाराज पूज्य श्री १०५ श्री मदनमोहन मालवीयजी के कर कमलो में यह पत्र व्याख्यान के वक्त अर्पण किया गया जिसकी यह नकल अापके सेवा में भेट किया जाता है
स्वागत की खुशा का गायन
( तर्ज बाला लागा हो राज म्हारा)
प्राज तो पधारे प्यारे हिन्द के नेता ।
हिन्द के नेता प्यारे भारत के नेता ॥ किया है स्वागत जैन भ्राताओंने प्रानन्दहुधा है धना। परमेश्वर की पूर्ण कृपासे किया है भारत में नाम बड़ा ।। श्रापका नाममदनमोहन है साक्षात श्री कृष्ण तुल्य है। वाणी आपकी बहुत मधुर है व्याख्यान के प्राप पूरे चतुर हैं। अब तो कृपा करके प्यारे प्रेम की बंशी बजायो यहा। विश्व विद्यालय को प्रचलित करके मान बढ़ाया हिन्द
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(२)
मैं तो विनती करता है प्रभुसे मानन्द में रक्खे तुमको सदा। श्री गंगासिंहजी है पुण्यवानी उनकी महिमा लगती है प्यारी ।। नगर बीकाना है अति भारी खुशी रहो सदुनिया सारी। जवाहरमल गुण आपका गावे हिन्द के हो तुम मुख्य सितारे ॥
सर्व सज्जनों को शुभ चिन्तक--
मास्टर जवाहरमल शर्मा शाकद्वीपी ब्राह्मण भोजक ...... .बीकानेर ....
(राजपूताना)
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