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तर्ज पूर्ववत् । गजल कुव्यसन निषेध पर। लाखों व्यसनी पर गए, कुव्यसन के परसंग से। अय अज़ीज़ो वाज आओ, कुव्यसन के परसंग से ॥ टेर ॥ प्रथम जूबा है बुरा, इज्जव धन रहता कहां। महाराज नल वनवास गए, कव्यसन के परसंग से ॥१॥ मांस भक्षण जो करे, उसके दया रहती नहीं । मनुस्मृति में लिखा, कुव्यसन के परसंग से ॥ २ ॥शराव यह खराव है इन्सान को पागल करे । यादवों का क्या हुवा, कुव्यसन के परसंग से ॥३॥ रबडी बाजी है मना, तुम से सुता उन के हुवे । दामाद की इंगिनती करे, कुव्यसन के परसंग से ॥४॥ जीव सताना नहीं रवा, क्यों कत्ल कर कातिल बने । दोजख का मिजमान
हो, कुव्यसन के परसंग से ॥ ५ ॥ माल जो पर का चुरावे, __ यहां भी हाकिम दे सजा । श्राराम वह पाता नहीं, कुव्यसन
के परसंग से ॥६॥ इश्क दुरा परनार का, दिल में जरा तो गौर कर । कुछ नफा मिलता नहीं, कुव्यसन के परसंग से ॥७॥ गांना चड़स चण्डू अफीम, और भंग तमाखू छोडदो । चौथमल कद्दे नहीं भला, कुख्यरन के परसंग से ॥ ८ ॥
तर्ज पूर्ववत् ।। गजल द्यूत ( जूवा ) निषेध पर ।