Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 376
________________ ( 121 ) सावध, कुतुहलयुक्त वचन कदापि भी भाषण न करे क्योंकि इन वचनोंके भाषण करनेसे सत्य व्रतका रहना कठिन हो जाता है और यह नाही वचनव्रतियोंको भाषण करनेयोग्य है // द्वितीय भावना-क्रोधयुक्त वचन भी न भाषण करे क्योंकि क्रोधसे वैर, वैरसे पैशुनता, पैशुनतासे क्लेष, क्लेषसे सत्य शील विनय सवका ही नाश हो जाता है, क्योंकि क्रोधरूपि अग्नि किस पदार्थको भस्म नहीं करता अर्थात क्रोधरूपि अग्नि सर्व सत्यादिका नाश कर देता है // तृतीय भावना-सत्यवादी लोभका भी परिहार करे क्योंकि लोभके वशीभूत होता हुआ जीव असत्यवादी वन जाता है, तो फिर व्रतोंकी रक्षा केसे हो ? इस लिये लोभको भी त्यागे // __चतुर्थ भावना-भयका भी परित्याग करे क्योंकि भययुक्त जीव संयमको भी त्याग देता है, सत्य और शीलसे भी मुक्त हो जाता है, अपितु भययुक्त आत्माके भाव कभी भी स्थिर नही रहते // पंचम भावना-सत्यवादी हास्यका भी परित्याग करे / हास्यसे ही विरोध, क्लेप, संग्राम, नाना प्रकारके कष्ट उत्पन्न

Loading...

Page Navigation
1 ... 374 375 376