Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 17
________________ - - - - न्यामत विलास दीनों की सुनो पुकांरी, कहें न्यामत बारम्बारी। धर्म का चमके भान । अपनी ।। १३ ।। ___ चाल--विन फन तन मन सब डस गई नागनि बनके बाँसुरी ॥ तन मन धन विन फनन्डस लेगी पर नारी नागनी ॥ टेक ॥ बच चलना चातुर चेतन यह नागन की नागनी ।। नैनों से वशकर-लेती छलबलकारी नागनी ॥ १ ॥ बिन क्रोध किये नहीं काटे तनको कारी नागनी । यह हँसकर वश मन करती जादूगारी नागनी ॥२॥ कछु देर लगे उसती दीखे वह कारी नागनी । चपला सी चंचल चोट करत चित हारी नागनी ॥३॥ इक भवमें प्राण हरे काटे जो कारी नागनी। . भव भव नहीं उतरे लहर डसे पर नारी नागनी ॥ ४॥ . यह सुख हारी दुखकारी भारी नारी नागनी। परम परकामन परकामन परहारी नागनी ॥ ५ ॥ हो लाख जतन जो काटे पखलकारी नागनी । न्यामत नहीं कोई उपाय उसे परनारी नागनी ॥ ६ ॥ - - - - चाल-तुम्हें दूंगा मैं वाको खबरिया जान ॥ मुझे देदो यह प्यारी सुंदरिया जान ॥ नाटक ॥ तूतो करता है काहे पे इतना मान, तेरा जीना है जलका बुलबुला जान ॥ टेक॥

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