Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 15
________________ न्यामत विलास फेरो भावना की कलं, गाड़ी जायगी निकल । अजी छोड़ो छोड़ो हटको छोड़ो, झूठी युक्ति करने वालो ।। श्रीजिन ॥ चाल-अफीम तेरे सट्टे ने पागल बना दिया। इस मोह नींद में तुम्हें सोना न चाहिये । सोना न चाहिये तुम्हें सोना न चाहिये, इस मोह० ॥टेका। बसमें कुमत के अब तुम्हें होना न चाहिये। भोगों में निज आनन्द को खोना न चाहिये ॥ १ ॥ जाना है तुझे दूर बिकट पंथ अकेला। रस्ते में काटे शूलं को बोना न चाहिये ॥२॥ अपना स्वरूप देख पर परणति को छोड़दे । तू चेतन जड़ के संग में होना न चाहिये ।। ३ ।। तजराग देष न्यायमत संब पुदगलीक हैं। सुख में खुशी या रंज में रोना न चाहिये ।। ४ ॥ १९ चाल-अपनी हमें भक्ती का प्रभु दीजे दान । (अनायों की तरफ से अपील ।) अपनी हमें सम्पति का कछु दीजो दान ।। टेक ॥ यह दीन अनाथ विचारे, फिरें घरघर मारे मारे । नहीं तुमको कछु ध्यान ।। अपनी० ॥१॥

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