Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 33
________________ न्यामत विलास चाल-चले हे कार के हिलाने को ।। पढ़ो विद्या अविद्या हटाने को। हटाने को भय मिटाने को ।। टेक ॥ . . खोया जहालत ने भारत को प्यारे । पढ़ो विद्या जहालत मिटाने को ॥ पढ़ो० ॥ १ ॥ फूट अविद्या ने घरघर में डाली। सारी भारत की संपत लुटाने को। पढ़ो॥२॥ भारत में व्यभिचार इसने चलाया। बल बीरज सभोंके घटाने को ।। पढ़ो० ॥३॥ न्यामत अविद्या ने भारत उजाड़ा। . लड़े आपस में सरके कटाने का ॥ ४॥ चाल-पहलू में यार है मुझे उसकी खबर नहीं ॥ (गजल) परदा पड़ा है मोह का आता नजर नहीं। चेतन तेरा स्वरूप है तुझको खबर नहीं ।। टेक ।। चारों गती में मारा फिरा ख्वार रात दिन । आपे में अपने आपको लखता मगर नहीं ॥१॥ तज मन विकार धारले अनुभव सुचेत हो। निजपर विचार देख जगत तेरा घर नहीं ॥ २॥

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