Book Title: Jain Arti Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ जय जय आरती आदि जिणंदा जय जय आरती आदि जिणंदा, नाभिराया मरुदेवी को नन्दाः। पहेली आरती पूजा कीजे, नरभव पामीने लाहो लीजे, जय....॥1॥ दूसरी आरती दीनदयाळा, धूलेवा मंडपमां जग अजवाळ्या, जय... ॥2॥ तीसरी आरती त्रिभुवन देवा, सुर नर इंद्र करे तोरी सेवा, जय... ॥3॥ चौथी आरती चउ गति चूरे, मनवांछित फल शिवसुख पूरे, जय... ॥4॥ पंचमी आरती पुण्य उपाया, मूळचंदे ऋषभ गुण गाया, जय...॥5॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 165