Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
View full book text
________________
परमपूज्य आचार्य श्री १०८ विमलसागर जी के आशीर्वचन
पण्डित जी समाज के अग्रणी विद्वान् हैं। साथ-साथ व्रती भी हैं। उनका जीवन समाज की सेवा में बोता है और बीत रहा है। हमारी उनको पूर्ण 'समाधिरस्तु' है । वे समाज को उठाते हुए जैन शासन की महिमा को बढ़ाते हुए जन-जन के लिये कल्याणकारी और मंगलमय
हों। वे अपनी भावनाओं को वृद्धिंगत करते चले जावें । यही आशीर्वाद है। श्रमणगिरि (दतिया) म०प्र०, १४-२-८९ ।
परमपूज्य १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी
अलिखित आशीर्वाद इस आयोजन के प्रायोजन से ही विभिन्न चरणों
पर प्राप्त होते रहे हैं और
आज भी प्राप्त हैं।
मुनि श्री अरहसागर जी
एवं माता पामती जो इस मंगलमय साहित्यिक अनुष्ठान एवं
ज्ञान-तपोपूत के गुणगान में अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org