Book Title: He Navkar Mahan
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Padmasagarsuriji

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शुश्र www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. वंदना विश्व मित्र नवकार ! तुम्हें वंदन । असंख्य अनगिनत शत् शत् प्रणाम ।। अरे, तुम्हें वंदन करनेवाले अनेक हैं, अनेकानेक हैं इस जगमें । विश्व का हर प्राणी और चराचर जीव एक या दूसरे प्रकार से तुम्हें नित्य, नियमित वंदन करते हैं; लेकिन मैं अनेकों में एक हूँ । प्रिय नवकार ! मेरी वंदना... प्रणाम तुम्हारे चरणों को स्पर्श करेगा न ? अन्य की वंदना में वह कहीं खो तो नहीं जाएगा और जीवन के भूलभुलैये में गुम न जाएगा न ? मेरे वंदन की आवाज.... ध्वनि तुम तक पहुँच तो जाएगी न ? मेरे वंदन की ओर ध्यान दोगे न ? उसे सहज भाव से स्वीकार करोगे न ? हे आराध्य ! तुम उसे सुनो या न सुनो मुझे भला उससे क्या मतलब ? मेरा एकमात्र यही कर्तव्य है कि तुम्हें भक्तिभाव से वंदन करूँ ! एक बार नहीं, बल्कि हजार बार, बस ! तुम्हें वंदन | सिर्फ तुम्हें ही वंदन | श्रद्धासिक्त और भावयुक्त ॥ For Private And Personal Use Only हे नवकार महान

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