Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 19
________________ entwirininct nant Vetrtatatatatatatatatatatatatetetetrtetetatateretetetetetstetetletetatater tatatutetatuttituttituttitutetstatutetstatutatuttttotsteteti नुं सेवन करे ते असंवृतबकुश ४ अने नेत्र नासिका मुखादिना मछने साफ करे तो ते यथासूक्ष्मबकुश ५ कुशीलना वे भेद के प्रतिसेवनाकुशील अने कषायकुशील विराधकपणाए करीने जे कुशील ते प्रतिसेवनाकुशोल अने संज्वलनना उदयरूप कषायोए करीने कुशील ते कषायकुशील, ते प्र. तिसेवना कुशीलना पांच भेद-जे ज्ञाननो आश्रय करीने ज्ञाननी. विराधना करे ते ज्ञानप्रतिसेवनाकुशील१ एपकारे दर्शननी विराधना करे ते दर्शनप्रतिसेवनाकुशील २, चारित्रनी विराधना करै ते चारित्र ॐ प्रतिसेवनाकुशील ३,तपनी विराधना करे ते नपकुशील४,आ तपस्वी छ एवी प्रशंसा करवाथी तुष्टमान थाय ते यथासूक्ष्मप्रतिसेवना कुशील ५, कषाय कुशीलना पांच भेद छे-संज्वलनकषायना उदयवाळो थह ने ज्ञाननी विराधना करे ते ज्ञानकषायकुशील १ एवी रीते दर्श ननी विराधना करे ते दर्शनकषायकुशील र सपनी विराधना करे ते तपकषायकुशील कषायाविष्ट थइने शाप आपे ते चारित्रकषायशील ४ मनथी क्रोधादि कषायोगें सेवन करे ते यथा सक्षमकषायकुशील ५, ॐ आ बाबत उत्तराध्ययन सूत्रना ६ अध्ययननी म्होटी टीकामां विस्तारथी कहेली छे, प्रतिसेवनाकुशील मूलगुणनी विराधना क. रतो थको केटलाक उत्तर गुणोनी पण विराधना करे छे, तेने माटे भगवतीसूत्रमा काछे के katetetztetetztetstetrtetetztetetztetet tetettettetetetetetrtetetztetetrtetebetetztetetetetetztetett

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