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गौतमचरित्र ।
करने लगे क्योंकि संसाररूपी समुद्र में डूबते हुए प्राणियोंको पार होनेके लिये अनुप्रेक्षा ही नावके समान हैं ॥ २३९ ॥ वे चितवन करने लगे कि इस संसार में मनुष्योंका शरीर, यौवन आदि सब क्षणस्थायी हैं, झट नष्ट होजाते हैं, यह जीवन पानीके बुदबुदा के समान है और लक्ष्मी विजलीके समान चंचल है ।। २३२ || जब भरत आदि चक्रवर्तियोंका ही जीवन नष्ट होजाता है तो हे जीव ! तू तो किसी गिनती नहीं है फिर भला अपने कार्य सिद्ध करने में तू कैसे समर्थ हो सकता है ॥ २३३ ॥ जिसप्रकार बिलावके द्वार पकड़े हुए और भयभीत हुए चूहे की कोई रक्षा नहीं कर सकता उसीप्रकार यमरूपी शत्रुके द्वारा पकड़े हुए इस जीवकी कोई रक्षा नहीं कर सकता, कोई नहीं बचा सकता ॥ २३४ ॥ भगवान् तदेव विना इस संसार में प्राणियोंका और 'कोई शरण नहीं है इसलिये हे प्राणिन् ! तू सावधान होकर भगवान् अर्हतदेवका ही स्मरण कर || २३५ ।। हे जीव ! तूने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भाव इन पांचों प्रकारके संसारमें
भवाकूपारमज्जताम् ॥२३१॥ नृणां लोके क्षणस्थायि शरीरयौवनादिकम् । जीवितं बुदबुदौपम्यं शंपावदिव रा मता ॥ २३२ ॥ चक्रिणां भरतादीनां जीवितं यदि नश्यति । त्वं छिन्नोसि कथं जीव क्षमस्व कामाने || २३३ ॥ रक्षते कैरथं जीवो गृहीतो यमशत्रुभिः । अशरण्यो भयैर्भीतो मार्जारेणेव मूषकः ॥ २३४ ॥ भगवंत चिना नैव शरण्यं कोऽपि देहिनाम् । अतस्तत्स्मरणे प्राणिन् ! सावधानो भव त्वक्रम् || २३९ ॥ पंचविधेऽपि संसारे तो भ्रस्त्वनेकशः ।