Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 193
________________ १८४] गौतमचरित्र। देनेमें बड़ा भारी उत्साह दिखलानेवाले, परस्पर एक दूसरोंके साथ वादविवाद करनेवाले, माता पिता आदि वृद्धपुरुषोंकी आज्ञाका भंग करनेवाले, कुदानके देनेवाले, मद्य, मांस, मधुका सेवन करनेवाले, इष्टवियोगी, अनिष्टसंयोगी और कुबुद्धिको धारण करनेवाले होंगे॥१७५-१८२॥ पापकर्मके उदयसे सात प्रकारके युद्ध सदा बने रहेंगे, धान्य बहुत थोड़ा उत्पन्न होगा, सब लोगोंको सदा भय बना रहेगा, गोवध करनेवाले यज्ञोंमें चतुर (बहुतसे पशुओंका होम करनेवाले) कुधर्मोमें लोग सदा लीन रहेंगे, जो लोग स्वयं पतित हुए हैं वे मिथ्या उपदेश दे देकर दुष्ट मनुष्योंको और पतित करते रहेंगे ॥१८३-१८॥ पंचमकालके प्रारंभमें शरीरकी ऊंचाई सात हाथकी होगी फिर घटते घटते अंतमें दो हाथकी रह जायगी॥ १.८५ ॥ प्रारंभमें मनुष्योंकी आयु एकसौवीस वर्षकी होगी फिर घटते घटते ॥१७९॥ अन्योपकृतिभिहीना जैनधर्मविरोधिनः । परपीडामहोत्कंठाः परस्परविवादिनः ॥१८०॥ मातृपित्रादिवृद्धानामाज्ञाभंजनकारिणः । कुत्सितदानकर्तारो मद्यमध्वामिषाशिनः ॥ १८१ ॥ इष्टासंयोगिनोऽनिष्टयोगभाजः कुबुद्धयः । माः प्रवर्तयिष्यंति स्वपूर्वेनोविपाकतः ॥ १८२ ॥ ( अष्टभिः कुलकम् । ) । सप्तेति विग्रहा योगैभविष्यंति कुनेहसः । अत्यल्पसस्यसंपन्नाः सर्वजनभयावहाः ॥१८३॥ गोदंडाध्वरदक्षेषु कुधर्मेषु स्वयं सदा । पतंतः पातयिष्यंति कुजनान् कूपदेशतः ॥ १८४ ॥ आदौ सप्तकरोत्सेधाः प्रपत्स्यते हि मानवाः । ततः क्रमेण हान्या तु युग्महस्तप्रमोच्छ्रिताः ॥१८५॥ विंशाधिकशताब्दाश्च पूर्वआयु नृणां मतम् । दुःषमेतः क्रमाखान्या विंशति

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