Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 16
________________ प्रथम अधिकार | [ ७ उसीप्रकार वे सरोवर भी सरस वा जलसे भरपूर थे और कवियों के बचन जैसे पद्मबंध ( कमलके आकार में बने हुए श्लोक ) होते हैं उसीप्रकार वे सरोवर भी पद्मबंध अर्थात् कमलोंसे सुशोभित थे || २७ ॥ उस देशके पर्वतों की गुफाओंमें किन्नर जातिके देव अपनी अपनी देवांगनाओंके साथ क्रीड़ा करते हुए और चंद्रमाके वाहक देवोंको निश्चल करते हुए सदा गाते रहते हैं ।। २८ ।। वहांके बनोंकी शोभाको देखकर देव लोगोंके हृदय भी कामदेव के वशीभूत होजाते हैं और वे अपनी अपनी देवांगनाओंके साथ वहींपर क्रीड़ा करने लग जाते हैं ॥ २९ ॥ उस देशमें पद पदपर ग्वालोंकी स्त्रियां गायें चराती थीं और वे ऐसी सुन्दर थीं कि उनके रूपपर मोहित होकर पथिक लोग भी अपना अपना मार्ग चलना भूल जाते थे ॥ ३० ॥ वहांकी जनता धर्म, अर्थ, काम इन तीनों पुरुषार्थीको सेवन करती हुई शोभायमान थी, जिनधके पालन करने में भारी उत्साह रखती थी और शीलव्रत से सदा विभूषित रहती थी ॥ ३१ ॥ वहांपर श्री जिनेन्द्रदेवके विमलानि च । सरसानि सपद्मानि बचनानीव सत्कवेः ॥ २७ ॥ कंदरेषु गिरींद्राणां गायंति यत्र किन्नराः । स्वस्त्रीभिः क्रीडया युक्ताः स्थिरीकृतेंदुवाहनाः || २८ ॥ अमरा यत्र दीव्यन्ति स्ववधूभिः समं पराः । वनशोभां समालोक्य कामनिर्जितचेतसः ॥ २९ ॥ पथिका यत्र पंथानं नाक्रामति पदे पदे । गोपसीमंतिनी रूपसंसक्तमानसा ध्रुवम् ॥ ३० ॥ शोभते जनता यत्र त्रिवर्गेषु परायणा | जिनधर्ममहोत्साहा सुशीलवतभूषिता ॥ ३१ ॥ यत्र वसुमती जाता भूमी रत्नादिसद्धनम् । *

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