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( ५३ ) (५-८) दूसरे के वैभव पर आश्चर्य करना, वैभव की इच्छा करना, मिले पर खुशी होना तथा सहर्ष वैभव उद्यम के पीछे आर्त ध्यान ।
.(५) खुद को नहीं मिला और दूसरे को अच्छी संपत्ति, वैभव, बंगला, मोटर, फर्नीचिर आदि मिला देखकर उस पर आश्चर्य करे, प्रशंसा करे, वैभव के गुणगान करे, यह भी आर्त्त ध्यान का लक्षण है। मन के अन्दर यह आश्चर्स लगे कि 'दूसरे को मिला वैसा हाय ! मुझे इष्ट नहीं मिला ? मुझे नहीं और दूसरे को कैसा अच्छा मिला।' अरे ! बाजार से कहीं से कोई दूसरा व्यक्ति कोई अच्छी चीज लेकर आया हो तो वह देखकर भी यह होता है।
- (६) स्वयं माल सम्पत्ति या वैभव की इच्छा करे, झंखना करे, प्रार्थना करे, वह वैसे उद्गार आदि बाहर के लक्षण से दिखता है। यह भी रहे हुए आर्त्त ध्यान का सूचक है । मनमें 'यह इष्ट कैसे मिले ?' इसके तन्मय चिंतन बिना बाहर प्रार्थना, इच्छा या प्रशंसा कसे व्यक्त हो ?
(७) प्राप्त हुई चीज वस्तु, सम्पत्ति, सन्मान आदि में समता, राग, खुशी आनन्द रहे; वह भी मुख मुद्रा, रहन सहन, और शब्दों से व्यक्त होता है। यह भी आन्तरिक आर्त्त ध्यान का सूचक है।
(८) सम्पत्ति, सन्मान आदि प्राप्त करने के लिए उत्साह सहित तैयार हो, उद्यम परिश्रम करे, वहां भी अन्तर में आर्त ध्यान उपस्थित है।
उपरोक्त लक्षण कदाचित मात्र धनराशि के बारे में हीन हो, पर एकाध वस्तु के बारे में और वह भी साधारण वस्तु के बारे में हो, तब भी वह आत ध्यान की सूचक है। यहां विचारणीय यह है