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( २३ ) इसी प्रसग में 'कहावत' के साथ समाप्त होने वाले कविवर के अनेक पद्यो मे से उदाहरण स्वरूप यहा एक पद्य प्रस्तुत किया जाता है :
फूल अमूल दुराइ चुराड,
लीए तौ सुगध लुके न रहैगे। जो कछु आथि के साथ सु हाथ है,
___ ता तिन कु सब ही सलहैगे। जो कछु आपन में गुन है,
जन चातुर आतुर होइ चहैगे। काहे कहो धर्मसी अपने गुण,
बूठे की बात बटाऊ कहेंगे।
महोपाध्याय धर्मवर्द्धन संस्कृत के विद्वान थे। उन्होने सस्कृत के सुभाषित श्लोकों को अनूदित करके भी अपनी रचनाओंमें यत्रतत्र स्थान दिया है। इस विषयमे उदाहरण देखिए :
रीस भयो कौइ राक, वस्त्र विण चलीयो बाट। तपियो अति तावड़ौ, टालता मुसकल टाट। वील रु ख तलि वेसि, टालणो माड्यो तड़को । तर हुंती फल बेटि, पड़यो सिर माहे पड़कौ ।