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( १५ ) ३. श्री जिनचंद्रसूरि ( कवित्त ) जैसे राजहंसनि सौ राजे मानसर राज,
जैसे विंध भूधर विराजै गजराज सौ। जैसे सुर राजि सुजु सोभ सुरराज साजै,
जैसे सिंधुराज राजै सिंधुनि के साज सौ। जसे तार हरनि के वृन्द सौं विराज चढ,
__ जैसे गिरराज राजै नद वन राज सौ । जैसे धर्मशील सौं विराजै गच्छराज तैसे
राजै जिनचदसूरि सघ के समाज सौं। जनता में सद्धर्म का प्रचार करने का मुख्य अग 'आचरण एव व्यवहार की शुद्धि है। मुनिवर ने इन विपयों ‘पर भी बहुत कुछ लिखा है। इसी श्रेणि मे उनकी नीति-प्रधान रचनाएँ है। इनमे कवि के दीर्घजीवन का सार समाया हुआ है। यहां कुछ उदाहरण इस सम्बंध में प्रस्तुत किए जाते हैं :
१. भाव भाव ससार समुद्र की नाव है,
___ भाव बिना करणी सब फीकी भाव क्रिया ही को राव कहावत,
भाव ही तैं सब बात है नीकी ।