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धन्य-चरित्र/364 एक बार चन्द्रपुर से एक ज्योतिषि को जाननेवाला दैवज्ञ आया। मेरे पिता अचानक इसे मिल गये। उसे ज्योतिषि जानकर समीप में रहे हुए मेरी ओर उद्देश्य करके पिताजी ने पूछा-"यह मेरी पुत्री है। इसकी जन्मपत्री जिसके साथ भी मिलायी, विरोधी ग्रह देखने को मिले।"
उस दैवज्ञ ने मेरी जन्मपत्री देखकर कहा-“हे श्रेष्ठी! चन्द्रपुर नामक नगर में श्रीपति श्रेष्ठी के धर्मदत्त नामक पुत्र है। उसकी जन्मपत्री मैंने ही बनायी है। उसकी जन्मपत्री से यह पूर्ण रूपेण मिलती है।"
तब उसने भुर्जपत्र पर लिखकर उसकी जन्म कुण्डली बतायी। मेरे पिता भी उसे देखकर अतीव प्रसन्न हुए। पर भाग्योदय को नष्ट देखकर मेरे पिता खिन्न हुए। तब उसने कहा-"यह धर्मदत्त सोलह करोड़ स्वर्ण का स्वामी होगा। इसमें कोई शक नहीं है।"
तब श्रेष्ठी ने कहा-"उसी के साथ अपनी पुत्री का विवाह करूँगा, क्योंकिकुलं च शीलं च सनाथता च, विद्या च वित्तं च वपुर्वयश्च । वरे गुणाः सप्त विलोकनीयास्ततः परं भाग्यवशा हि कन्या।।
कुल, शील, सनाथता, विद्या, धन, शरीर और वय-ये सात गुण वर में देखने योग्य होते हैं, उसके बाद तो कन्या का भाग्य ही काम आता है।
मूर्ख-निर्धन-दूरस्थ-शूर-मोक्षाऽभिलाषिणाम् ।
त्रिगुणाऽधिकवर्षाणामपि देया न कन्यका।। मूर्ख, निर्धन, दूरस्थ, सुभट, मोक्षाभिलाषी तथा तीन गुना ज्यादा वयवाले वर को कन्या नहीं देनी चाहिए।
उसने गणना करके लग्न मुहूर्त देखा और निर्णय करके कहा कि इस वर्ष अठारह दोषों से रहित शुद्ध लग्न मुहूर्त एक ही है और वह माघ शुक्ला पंचमी को दो-ढाई प्रहर बीत जाने के बाद का है।" यह सुनकर श्रेष्ठी ने कहा-"उस लग्न में तो बहुत थोड़े दिन रह गये हैं। अतः उसे आमंत्रण दिया जाये और वह आ सके, उतना समय भी नहीं है। भव्य लगन छोड़ना भी नहीं चाहिए। अतः पुत्री को लेकर हम वहाँ चले जाते हैं।"
इस प्रकार कहकर ज्योतिषी को स्नेहपूर्वक अत्यधिक दान देकर भेज दिया। जलपोत तैयार करवाकर अपनी पत्नी व पुत्री से युक्त वे वाहन पर चढ़े। प्रवहण भी वायु से प्रेरित होता हुआ तेज गति से चलने लगा। आधा मार्ग तय कर लेने के बाद दैव-योग से प्रतिकूल पवन के चलने से जहाज टूट गया। आयु शेष रहने से मेरे हाथ एक फलक लग गया। उसके सहारे तैरते हुए सातवें दिन किनारे पर पहुंची। वन के बीच रहते हुए सरोवर के पानी को पीकर श्रम से खेदित हुई वृक्ष के तले में जाकर जैसे ही सोयी, राक्षस ने उठाकर यहाँ छोड़ दिया। मुझे भय से कांपते हुए देखकर राक्षस ने कहा-"डरो मत । सात दिन से भूखा होने पर भी तुम्हें देखकर मेरे