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धन्य - चरित्र / 363 मुक्त जानकर आँखे खोलकर देखता है, तो वहाँ राक्षस तो नहीं था, पर वृक्ष की छाया का आश्रय लेती हुई एक दिव्य रूपवाली कन्या को देखा। उसे देखकर आश्चर्य चकित होते हुए विचार करता है - "क्या राक्षस कन्या के रूप में बदल गया । या फिर वह अन्य कोई कन्या है? क्या यह पाताल कुमारी है या खेचरी है या कोई देवी है? इस प्रकार विचारते हुए साहस धारणकर पूछा - "हे बाला! तुम कौन हो?" उसने प्रतिप्रश्न किया - "तुम कौन हो ? " कुमार ने कहा- "मैं तो मानव हूँ ।"
उसने भी कहा- "मैं भी मानवी हूँ ।"
कुमार ने पूछा - "इस विषम वन में अकेली कहाँ से आकर ठहरी हो?" उसने कहाँ - "भाग्य की विडम्बना है ।"
ब्रह्मा येन कुलालवन्नियमितो ब्रह्माण्डभाण्डोदरे, विष्णुर्येन दशावतारगहने क्षिप्तः सदा संकटे । रुद्रा येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गमने तस्मै नमः कर्मणे ।
जिसके द्वारा ब्रह्मा कुम्हार की तरह नियमित ब्रह्माण्ड रूपी भाण्ड के उदर में बिठाया गया है, जिसके द्वारा दश अवतार रूपी गहन संकट में विष्णु को सदा डाला गया है, जिसने कपाल रूपी पुटक को हाथ में लेकर रुद्र को सदैव भिक्षाटन ही करवाया है और जो सूर्य को सदैव गगन में भ्रमण कराता है, उस कर्म को नमस्कार है ।
अघटितघटितं घटयति, सुघटितघटितानि जर्जरीकुरुते ।
विधिरेव तानि घटयति, यानि पुमान्नैव चिन्तयति । ।
अघटित को घटित बनाती है और जो सुघड़ रूप से घटित है, उन्हें जर्जर करती है। विधि वैसी रचना करती है, जिसकी पुरुष कल्पना भी नहीं करता । उसने पूछा - "ऐसा कैसे हुआ ?"
उस स्त्री ने कहा—“तो सुनिए - सिंहल द्वीप में कमलपुर नामक नगर है। वहाँ 'यथा-नाम तथा गुण' के अनुसार धनसार नामक श्रेष्ठी है । उसकी पत्नी का नाम धनश्री है। उनकी पुत्री मैं माता-पिता को प्राणों से भी ज्यादा प्रिय हूँ। मैं क्रम से बढ़ती हुई यौवन को प्राप्त हुई । तब पिता ने विचार किया - इसके अनुरूप इभ्य - पुत्र खोजना चाहिए । पर यह पुत्री उसी को दूँगा, जिससे इसकी जन्म-पत्रिका के साथ ही राशि, गण, वर्ण, नाड़ी, स्वामी आदि का मेल होगा, जो भाग्योदय वाला होगा, उसके साथ लग्न कर दूँगा ।
इस प्रकार विचार करके अन्य - अन्य इभ्य पुत्रों की जन्म-पत्री देखने लगे, पर किसी के साथ नौ स्थानों का अविरुद्ध मेल नहीं बैठा । बहुत सारे इभ्य पुत्रों की कुण्डली देखी, पर किसी के भी साथ मेरी जन्म कुण्डी का मेल नहीं हुआ ।