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सो विभूषणा कहो, शोभारूप कहो, शिखररूप कहो, विशेष सुन्दरता मुगटरूप कहो अथवा चुलारूप कहो, सब मतलबका तात्पर्य्य एकार्थका हैं इसलिये गिनती करने योग्य है और जैसें द्रव्य, भाव, नाम, स्थापनासें चार निक्षेपे कहे हैं सो मान्य करने योग्य है तथापि द्रव्य, स्थापनादि का निषेध करने वालोंकों (श्रीखरतरगच्छवाले तथा श्रीतपगच्छादि वाले सर्व धम्मंवन्धु ) मिथ्यात्वी कहते हैं तैसे ही द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे जो चूला कही है सो अनादिकालसें प्रवर्त्तना सरु हैं श्रीतीर्थङ्करादि महाराजोंने प्रमाण raat है सो आत्मार्थियोंकों प्रमाण करके मान्य करनें योग्य है तथापि क्षेत्रकालादि चूलायोंकों गिनती में मान्य नही करते उलटा निषेध करते हैं और जो मान्य करते हैं जिन्होंको दूषण लगाते हैं ऐसे श्रीतीर्थङ्करादि महाराजों के विरुद्ध वर्तने वाले विद्वान् नामधारक वर्तमानिक महाशयोंको आत्मार्थी पुरुष क्या कहेंगे जिसका निष्पक्षपाती श्रीखरतरगच्छ के तथा श्रीतपगच्छादिके पाठक वर्ग स्वयं विवार लेवेंगे
और अधिक मासको कालचूला कहने से भी गिनती में निषेध कदापि नही हो सकता है किन्तु अनेक शास्त्रोंके प्रमाणे से श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराज की आज्ञानुसार अवश्यमेव गिनती में प्रमाण करणा योग्य है तथापि जैन सिद्धान्त समाचारकारनें कालचूलाके नामसें अधिकमासकी गिनती उत्सूत्र भाषण रूप निषेध किवी है जिसका उतारा प्रथम इसजगह लिख दिखाते हैं और पीछे इसकी समालोचनारूप समीक्षा कर दिखायेंगे, जैनसिधान्त समाचारीके पृष्ठ की
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