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[१]
दिनसे ज्ञात पर्युषणा करे सो १०० दिन यावत् कार्तिक पूर्णिमा तक उसी क्षेत्र में ठहरे ऐसा श्रीतपगच्छ के श्रीक्षेमकीर्त्ति सूरिजी कृत श्रीवृहत्कल्पवृत्तिका पाठमें विस्तारपूर्वक कहा है ऐसे ही अनेक शास्त्रोंमें कहा है जिसके पाठ भी सीवृहत्कल्प वृत्यादिकके कितने ही पहिले लिस आया हु और आगे भी लिख दिखाउंगा और खास सोनी महाशयोंके लिखे पाठ भी अभिसमें बीय दिने श्रावण शुक्लपचमीको पर्युषणा करनेमें आतेथे इसका विशेष खुलासा के साथ आगे विस्तार पूर्वक लिसुंगा जिससे वहां प्राचीनकालका तथा वर्तमानिक कालका भच्छी तरहसे निर्णय हो जायेगा
और आगे वन लीजो महाशयांने श्रीपर्युषणा कल्पचूर्णिका तथा श्रीतिीयपूर्णिका पाठ लिखके मासवृद्धि वर्तमानिक दो श्रावण होते भी साद्रव मासमें ही पर्युषणा करने का दिखाया है इस पर मेरा इतना ही कहना है कि इन तीनो महाराने (पर्युपना कल्पपूर्णिमें और श्रीनिशीथचूर्णिमें ग्रन्थकार महाराजने पर्युषणा सम्बन्धी विस्तारपूर्वक पाठ लिखाया जिसके आगे और पीछे का संपूर्ण सम्बन्धका पाठको कोहके राज्यमकार महाराजके विरुद्धार्थमें उल्सूत्रभाषणरूप माया इपिसे अधूरा पोडासा पाठ लिखके भोले जीवों के पाउ लिख दिखाये और अपनी विद्वत्ताको बात दृष्टिरियोंमें समाई हैं इस लिये इस जगह भव्य जीवोंको जिःसन्देह होनेसे सत्य सतपर शुद्धश्रद्धा हो करके सत्यबाद ग्रहण करे इस लिये दोनो पूर्णिकार पूर्वधर महाराज कल संपूर्ण पर्युषण सम्बन्धी पाठ यहाँ लिख दिखाता हु श्रीपूर्वथर पूर्वाचार्य्यमी कृत श्रीपर्युषणा कल्प
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