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जो जो कल्पना मासवृद्धि होते भी पर्युषणा पिछाड़ी १० दिन रखने के लिये करेंगे सो सो सबीही उत्सूत्र भाषण रूप भोले जीवोंको मिथ्यात्व में गेरने वाले होवेंमें इसलिये श्री जिनेश्वर भगवान्की आज्ञाके आराधक सत्यग्राही सर्वसज्जन पुरुषोंसे मेरा यही कहना है कि श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रमें मासवद्धिके अभाव से 90 दिनके अक्षर देखके मास वृद्धि होते भी आग्रह मत करो और भारवृद्धिको मंजूर करके दूजा श्रावणमें अथवा प्रथम भाद्रपदमें पचास दिने पर्युषणा करके पिछाड़ी १०० दिन मान्यकरो जिससे उत्सूत्र भाषक न बनके श्रीजिनाज्ञा के आराधक बनोगे मेरा तो येही कहना है । मान्य करेंगें जिन्होंकी आत्माका सुधारा है इतने पर भी जो हठग्राही नहीं मानेंगे जिन्होंकी सम्यक्त्व रत्न बिना आत्माका सुधारा कैसे होगा सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जानें ;
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और श्रीसमवायाजी सूत्रका पाठपर न्यायाम्भोनिधि जीनें अपनी चातुराई प्रगट किवी है कि ( हे परीक्षक अब इस पाठके विचारणेसे तुमको मास वृद्धि हुये कार्त्तिक सम्बन्धी कृत्य आश्विन मास में करना पड़ेगा और कार्त्तिक मासमें करोंगे तो १०० रात दिनकी प्राप्ति होने से सिद्धान्त में विरुद्ध होगा फिर तो ऐसा हुवा कि एक अङ्गको आच्छादन किया और दूसरा अङ्ग खुल्ला होगया तात्पर्य्य कि- तुमने आज्ञाभङ्ग न हुवे इस वास्ते यह पक्ष अङ्गीकार किया तो भी आज्ञा भङ्गरूप दूषण तो आपके शिरपर ही रहा ) इस लेखको समीक्षा अब सुन लीजियें -- हे पाठकवर्ग देखो न्यायांभोनिधिजीनें तो शुद्धसमाचारी कारको दूषित ठह
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