Book Title: Bhugate Usi Ki Bhul
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 10
________________ भुगते उसीकी भूल जेब कटी है वह भुगतता होगा। इसलिए भुगतनेवालेकी भूल । उसने किसी समय चोरी की होगी इसलिए आज पकड़ा गया इससे वह चोर और काटनेवाला जब पकड़ा जायेगा तब चोर कहलायेगा। मैं आपकी भूल खोजने कभी बैढूँगा ही नहीं । सारा संसार सामनेवालेकी भूल देखता है । भुगतता है खद मगर सामनेवाले की भूल देखता है । इसलिए उलटे गुनाह दुगने होते जा रहे हैं और व्यवहार भी उलझता जाता है । यह बात समझ लेने पर उलझन कम होती जायेगी । भुगते उसीकी भूल दादाश्री : वह बुद्धि कहलाये । वह संसार कहलाये । बुद्धिसे इमोश्नल (भावुक) होंगे. पर कार्य सिद्धि कुछ भी नहीं होगी । यह यहाँ पर है तो, पाकिस्तानसे बम डालने वे आते थे, तब हमारी जनता अखबार में पढ़ती कि वहाँ पर ऐसे पड़ा तो यहाँ पर थबराहत फैल जाती थी। यह जो सारे असर होते है वह बक्षिसे होते हे, बुद्धि ही संसार खड़ा करती है । ज्ञान असरमुक्त रखता है । अखबार पढ़नेपर भी असरमुक्त रहते है । असरमुक्त अर्थात हमें छूएगा नहीं । हमें तो केवल जानता अऔ देखना ही है। (11) मोरबीकी बाढ़ का कारन ? वह मोरबीमें जो बाढ़ आई थी और जो कुछ हुआ, वह सब किसने किया था ? ढूँढ निकालिए जरा । किसने किया था वह ? इसलिए एक ही शब्द हमने लिखा है किइस दुनिया में भूल किसकी है ? खुदकी समझके लिए एक वस्तुको दो तरहसे देखनी है । भुगते उसीकी भूल एक तरहसे भोगने वालेको समझना है और देखनेवालेको "मैं उसे मदद नहीं कर सकता हूँ, मुझे मदद करनी चाहिए।" इस तरहसे समझना है । इस संसार का नियम ऐसाहे कि आँखसे देखें उसे भूल कहते हैं । जब कि कुदरती नियम ऐसा हे कि जो भुगत रहा है, उसीकी भूल है. असर हुआ वह .... ज्ञान या बुद्धि ? प्रश्रकर्ता : अखबारमें पढ़ें कि औरंगाबादमें ऐसा हुआ अथवा मोरबीमें ऐसा हुआ तो हमें उसका असर होता है, अब पढ़नेके बाद कुछ भी असर नहीं होता उसका तो उसे जड़ता कहेंगे? दादाश्री : असर नहीं होता, उसीका नाम ज्ञान । प्रश्रकर्ता : और असर होवे, उसे क्या कहेंगे? इस अख़बारका क्या करना जानना और देखना, केवल ! जानता अर्थात खुल्ला जो ब्योरेवार लिखा हो उसे जानता कहेंगे और जब ब्योरेवार नहीं होता तब उसे देखना कहेंगे । इसमें किसीका दोष नहीं है। प्रश्नकर्ता : कालका दोष सही न ? दादाश्री : कालका दोष क्यों कर ? भगते उसीकी भल । काल तो बदलता ही रहेगान ? क्या अच्छे कालमें नहीं थे हम ? चौबीस तीर्थंकर थे तब क्या नहीं थे हम? प्रश्नकर्ता : थे। दादाश्री: तो उस दिन हम चटनी खोनेमें लगे रहें, उसमें काल बेचारा क्या करे? कालतो अपने आप आता ही रहेगा न । दिन में काम नहीं करेंगे तो क्या रात नहीं होगी? प्रश्नकर्ता : होगी। दादाश्री : फिर रात गये दो बजे चने लेने भेजेगे तो दुगने दाम देने पर भी कोई देगा क्या ?

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