Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
२ सेर तथा निम्न लिखित चीज़ोंका कल्क २० । (४१२५) पिप्पलीतेलम् तोले लेकर सबको २ सेर तिलके तेलमें मिलाकर
(वं. से. । नासा.) पकावें । जब तैल मात्र शेष रह जाय तो छान लें। सपिप्पलीकुष्ठमहौषधानां
कल्कद्रव्य-काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, विडोककषायकल्कैः । मेदा, महामेदा, सोया, दुद्धि, मजीठ, मोम, | तैलं विपर्क क्षवयौ च नस्य गिलोय, अनन्त मूल, राल, सेंधा नमक और सफेद वसां पवेतैलमयोधृतश॥ चन्दन । सब समान भाग मिश्रित २० तोले । । कषाय-पीपल, कूठ, सोंठ, वायविडंग
यह तैल गलित और स्फुटित भयंकर वात- | और मुनक्का समान भाग मिश्रित १ सेर । पाका रक्त, चर्मदल नामक कुष्ठ, पामा, विपादिका, कुष्ठ, जल ३२ सेर । शेष पानी ८ सेर । अर्श, वीसर्प, व्रणशोथ और भगन्दरको नष्ट करता कल्क-उपरोक्त समस्त चीजें समान भाग है । वातरकका कोई भी ऐसा उपद्रव नहीं जिसे | मिश्रित १३ तोले माशे लेकर मलो पानी यह तेल नष्ट न कर सकता हो।
साथ पीस लें। (४१२४) पिण्डतेलम् (२) ।
विधि-२ सेर तिलका तैल अथवा घी (र. र.; वृं. मा.; यो. र.; भा. प्र.; वं. से.;
या बसा और उपरोक्त कल्क तथा काथ एकत्र ग. नि. । वा. र.; च. स. । चि. अ.
मिलाकर पकावें। २९ वातर.; वा. भ. । चि. अ. २२,
जब पानी जल जाय तो छान लें। च. द. । वातर.)
इसकी नस्य लेनेसे क्षवथु (छींक आना) सारिवासर्जयष्टयाइमच्छिष्टैः पयोन्वितैः।। सिद्धमैरण्डज सैलं वातरक्तरुजापहम् ॥
रोग नष्ट होता है। अपूतमथितस्यास्य पिण्डतैलस्य योगतः ॥ (४१२६) पिप्पल्या तैलम् (१)
सारिवा, राल, मुलैठी और मोम ५-५ | ( मै. र.; वं. से.; . मा.; च. द. । अर्स.) तोले लेकर पहिली : चीजोंको खब महीन पीस | पिप्पली मधुकं बिल्वं शता मदन वचाम् । लें फिर २ सेर अरण्डी के तेलमें यह चारों चीजें | कुष्ठ शुण्ठी पुष्कराख्यं चित्रकं देवदारु च ।। तथा ८ सेर दूध मिलाकर मन्दामि पर पकावें । | पिष्टा तैलं विपक्तव्यं द्विगुणक्षीरसंयुतम् । जब दूध जल जाय तो तेलको ठण्डा करके बिना अर्शसां मूढवातानां तच्छ्रेष्ठमनुवासनम् ॥ छाने हो बोतलों में भर दें।*
गुदनिःसरणं शूलं मूत्रकृच्छु भवाहिकाम् । __ इसकी मालिश से वातरक्त का नाश होता है। | कटयूरुपृष्ठदौर्बल्यमानाई बसणे रुजम् ।।
*कुछ प्रन्थों में दूधका अभाव है तथा एरण्ड तैल पिच्छात्रावं गुदे शोर्य वातवर्णविनिग्रहम् । लिसकर केवल तैल शब्द लिखा है । | उत्थानं बहुशो यच जयेचैवानुवासनम् ॥
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