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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [३६८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि २ सेर तथा निम्न लिखित चीज़ोंका कल्क २० । (४१२५) पिप्पलीतेलम् तोले लेकर सबको २ सेर तिलके तेलमें मिलाकर (वं. से. । नासा.) पकावें । जब तैल मात्र शेष रह जाय तो छान लें। सपिप्पलीकुष्ठमहौषधानां कल्कद्रव्य-काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, विडोककषायकल्कैः । मेदा, महामेदा, सोया, दुद्धि, मजीठ, मोम, | तैलं विपर्क क्षवयौ च नस्य गिलोय, अनन्त मूल, राल, सेंधा नमक और सफेद वसां पवेतैलमयोधृतश॥ चन्दन । सब समान भाग मिश्रित २० तोले । । कषाय-पीपल, कूठ, सोंठ, वायविडंग यह तैल गलित और स्फुटित भयंकर वात- | और मुनक्का समान भाग मिश्रित १ सेर । पाका रक्त, चर्मदल नामक कुष्ठ, पामा, विपादिका, कुष्ठ, जल ३२ सेर । शेष पानी ८ सेर । अर्श, वीसर्प, व्रणशोथ और भगन्दरको नष्ट करता कल्क-उपरोक्त समस्त चीजें समान भाग है । वातरकका कोई भी ऐसा उपद्रव नहीं जिसे | मिश्रित १३ तोले माशे लेकर मलो पानी यह तेल नष्ट न कर सकता हो। साथ पीस लें। (४१२४) पिण्डतेलम् (२) । विधि-२ सेर तिलका तैल अथवा घी (र. र.; वृं. मा.; यो. र.; भा. प्र.; वं. से.; या बसा और उपरोक्त कल्क तथा काथ एकत्र ग. नि. । वा. र.; च. स. । चि. अ. मिलाकर पकावें। २९ वातर.; वा. भ. । चि. अ. २२, जब पानी जल जाय तो छान लें। च. द. । वातर.) इसकी नस्य लेनेसे क्षवथु (छींक आना) सारिवासर्जयष्टयाइमच्छिष्टैः पयोन्वितैः।। सिद्धमैरण्डज सैलं वातरक्तरुजापहम् ॥ रोग नष्ट होता है। अपूतमथितस्यास्य पिण्डतैलस्य योगतः ॥ (४१२६) पिप्पल्या तैलम् (१) सारिवा, राल, मुलैठी और मोम ५-५ | ( मै. र.; वं. से.; . मा.; च. द. । अर्स.) तोले लेकर पहिली : चीजोंको खब महीन पीस | पिप्पली मधुकं बिल्वं शता मदन वचाम् । लें फिर २ सेर अरण्डी के तेलमें यह चारों चीजें | कुष्ठ शुण्ठी पुष्कराख्यं चित्रकं देवदारु च ।। तथा ८ सेर दूध मिलाकर मन्दामि पर पकावें । | पिष्टा तैलं विपक्तव्यं द्विगुणक्षीरसंयुतम् । जब दूध जल जाय तो तेलको ठण्डा करके बिना अर्शसां मूढवातानां तच्छ्रेष्ठमनुवासनम् ॥ छाने हो बोतलों में भर दें।* गुदनिःसरणं शूलं मूत्रकृच्छु भवाहिकाम् । __ इसकी मालिश से वातरक्त का नाश होता है। | कटयूरुपृष्ठदौर्बल्यमानाई बसणे रुजम् ।। *कुछ प्रन्थों में दूधका अभाव है तथा एरण्ड तैल पिच्छात्रावं गुदे शोर्य वातवर्णविनिग्रहम् । लिसकर केवल तैल शब्द लिखा है । | उत्थानं बहुशो यच जयेचैवानुवासनम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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