Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[३१८]
भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[पकारादि
तोलार्द्धमाना गुटिका माणदेति प्रकीर्तिता। हृद्रोग, गुल्म, शूल, श्वास और खांसी से पीडित पूर्व भक्ष्या च पश्चाच्च भोजनस्य यथावलम् ॥ रोगियोंके लिये अमृतके समान गुणकारी है। इन्यादीसि सर्वाणि सहजान्यनजान्यपि। यदि अर्शके साथ मलावरोध भी हो तो इस वातपित्तकफोत्थानि सनिपातोद्भवानि च ॥ ! योगमें सेठ के स्थान में हर डालनी चाहिये और पानात्यये मूत्रकृच्छे वातरोगे गलग्रहे। यदि पित्ताश में सेवन करना हो तो गुड़के स्थान विषमज्वरे च मन्देऽग्नौ पाण्डुरोगे तथैव च ॥ में समस्त चूर्णसे ४ गुनी खांड डालनी चाहिये । कृमिहद्रोगिणाश्चैव गुल्मशूलातिनां तथा। गोलियां गुड़ या खांडकी चाशनी बनाकर उसमें श्वासकासपरीतानामेषा स्यादमृतोपमा ॥ अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर बनानी चाहिये शुण्ठ्याः स्थानेऽभया देया विड्ग्रहे पित्तपायुजे। क्यों कि अग्निके संयोगसे ये लघु हो जाती हैं। प्राणदेयं सिता देया चूर्णमानाचतुर्गुणा ॥ यह गुटिका अम्लपित्त और अग्निमांधादिमें अम्लपित्ताग्निमान्यादी प्रयोज्या गुदजातुरे। | भी उपयोगी हैं। पक्त्वैनं गुडिकाः कार्या गुडेन सितयाऽथवा ॥
(४००६) प्राणप्रदो मोदकः परं हि वनिसंसर्गाल्लघिमान भजन्ति ताः॥
(वृ. यो. त.। त. ६९; कृ. नि. र.; यो. र.। अर्श.) सेठ ३ पल, कालीमिर्च ४ पल, पीपल,
| तालीसज्वलनोपणाः सचविकास्तुल्या द्वि २ पल, चव १ पल, तालीसपत्र १ पल, नागकेसर आधा पल, पिप्पलीमूल २ पल (१० तोले)
भागा भवेतेजपात आधाकर्ष, छोटी इलायची १ कर्ष
| कृष्णा मूलसमन्विता त्रिपलिका शुण्ठी चतु
जातकम् ॥ (११ तोला ), दालचीनी आधाकर्ष और
स्यान्मुष्टिपमितं गुडत्रिगुणितैरेमिः कृता मोदकाः गुड़ ३० पल (१५० तोले) लेकर गुड़की चाश
कासश्वासमदामिमान्यगुदजप्लीहप्रमेहापहा॥ नीमें अन्य समस्त ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर ६-६ माशे की गोलियां बनालें ।
___ तालीसपत्र, चीता, कालीमिर्च, और चव एक
एक गाग, पीपल और पीपलामूल २-२ भाग, ___ इन्हें भोजनके पूर्व तथा पश्चात् खाना
| साठ ३ भाग और चातुर्जात (दालचीनी, तेजपात, चाहिये।
| इलायची, नागकेसर ) १ भाग लेकर सबके इनके सेवनसे वातज, पित्तज, कफज और चूर्णको उससे ३ गुने गुड़में मिलाकर गोलियां सन्निपातज अर्श तथा रक्तार्श और सहजार्श नष्ट बना लें। होती है।
इनके सेवनसे खांसी, श्वास, मद, अग्नियह वटी पानात्यय, मूत्रकृच्छू, वातरोग, मांध, अर्श, तिल्ली और प्रमेह नष्ट होता है। गलग्रह, विषमज्वर, मन्दाग्नि, पाण्डु, कृमि, (मात्रा-६ माशे । अनुपान उष्ण जल ।)
For Private And Personal Use Only