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तो यह अन्तर क्यों पड़ता? अन्तर के कारण यह स्पष्ट है कि आत्मा गर्भ में आते समय अपने साथ भी कुछ लाता है और अपने साथ भाव-रूप में जो कुछ लाता है, उसीसे द्रव्येन्द्रियां बनती हैं।
कदाचित् कोई कहने लगे कि हमने तो ऐसा देखा नहीं, तब उससे पूछना चाहिए कि क्या आपने यह देखा है कि गर्भ में आने वाला जीव भावेन्द्रिय-सहित नहीं आता है अर्थात् भावेन्द्रियों से रहित आता हैं? अगर आपने यह भी नहीं देखा है तो फिर ज्ञानियों की बात के सामने आपकी बात कैसे मान्य हो सकती है? इसके सिवा, गर्भ में जीव भावेन्द्रिय सहित आता है यह कहकर ज्ञानियों ने आपको भोग-विलास करने का आदेश-उपदेश दिया हो तो उनकी बात भले ही न मानो, परन्तु उनका कहना तो यह है कि यह इन्द्रियां बड़ी कठिनाई से मिली हैं। गंभीर विचार करके इनका सदुपयोग करो। ऐसी अवस्था में ज्ञानियों की बात शंकास्पद कैसे हो सकती है?
अब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! जीव गर्भ में शरीर सहित आता है या शरीर-रहित आता है?
शीर्यते इति शरीरम्! अर्थात् जो क्षण-क्षण में नष्ट होता रहता है अथवा जिसमें आत्मा व्याप्त होकर रहता है, वह शरीर कहलाता है।
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया -हे गौतम, आत्मा एक अपेक्षा से शरीर-सहित गर्भ में आता है, और दूसरी अपेक्षा से शरीर-रहित भी आता है।
प्रश्न हो सकता है, एक ही प्रश्न के उत्तर में यह परस्पर विरोधी बातें किस प्रकार कही गई हैं? भगवान् कहते हैं-सत्य यही है। किसी भी बात को अनेक दृष्टिकोणों से देखो तभी वह पूरी और सत्य रूप में दिखाई देगी।
हम लोग छद्मस्थ हैं। हमें एक पक्ष देखकर दूसरे पक्ष पर विश्वास करना चाहिये। दोनों पक्ष ज्ञानी देख सकते हैं। छद्मस्थ सभी सूक्ष्म और स्थूल बातें देखना चाहते हैं। परन्तु यह नहीं समझते कि अगर हम सब कुछ जानने लगें तो हम में और ईश्वर में अन्तर ही क्या रहेगा? और ईश्वरत्व क्या सहज ही मिल जाता है? उसके लिए न जाने कितने प्रबल प्रयत्न की आवश्यकता है।
भगवान् फरमाते हैं-हे गौतम! शरीर दो प्रकार के हैं-स्थूल और सूक्ष्म। औदारिक, वैक्रिय और आहारक, यह तीन शरीर स्थूल हैं और तेजस तथा कार्मण शरीर सूक्ष्म है। जीव गर्भ में तेजस एवं कार्मण शरीरों के साथ आता है, अतएव वह इन सूक्ष्म शरीरों की अपेक्षा शरीर-सहित आता है। स्थूल
- भगवती सूत्र व्याख्यान २१३
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