Book Title: Bhagwati Sutra Part 17
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 673
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०४० अ. श.१ प्र. समय कृ.कृ. संजिपञ्चेन्द्रियोत्पातः ६५ शुक्ललेश्याः प्रथम समय कृतयुग्मकतयुग्म संज्ञिपञ्चेन्द्रिया भवन्तीति । 'सेसं जहा बेंदियाणं पढमसमइयाणं जाब अणंतखुनो' शेषं पूर्व कथितातिरिक्तं सर्व यां द्वीन्द्रियाणां प्रथम सामयिकानां कथितं तथेत्र अनन्तवारं समुत्पन्नपाः एतत्प यन्तम् 'नवरं इथिवेदगा वा पुरितवेदगा वा नपुंमगवेदमा वा, सन्निको असमिणो' नवरं-केवलम् द्वीन्द्रिय प्रारणापेक्षया इमेव लक्षण्यं यत् प्रथमसमय कृतयुग्म कृतयुग्म संज्ञिपञ्चेन्द्रिया खीवेदका वा भवन्ति पुरुषवेदका वा भवन्ति नपुमकवेदका वा भवन्ति, किन्तु अवेदका न भवतीत्येतदेव वैलक्षण्यम् । संज्ञिनो असंज्ञिनो वा भवन्तीति । तत्र तु 'नो अहनी' इति पाठः एतदेव वैलक्षण्यम् । 'सेस कृष्णलेश्या ले लेकर यावत् शुक्सलेापाले होते हैं तो इनके सम्बन्ध में भी ऐसा ही कथन जानना चाहिये । 'लेलं जहा बेदियाण पढमसमइयाण जाब अलखुत्तों' वाशी का और कथन प्रथम समयवती दो इन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में जला महा गया है वैसा ही है । यह कथन 'यात् ये सलल प्राण आदि जी अनन्तवार प्रथम समय वती कृतयुग्म कुनयुग्म रूप से उत्पन्न हो चुके हैं। यहां तक करना चाहिये । परन्तु जो विशेषता द्वीन्द्रिय प्रकरण की अपेक्षा हल में है वह 'नवरं इथिवेदगा पा पुरिरावेदगा वानसमवेदना का लक्षणो अस निणों' इस सत्र पाठ द्वारा यहां स्कृष्ट की गई है दीन्द्रिय जीव केवल एक नपुंसक वेवाले ही होते हैं तब कि ये तीनों देवाले होते हैं। ये अवेदक नहीं होते हैं। बीन्द्रिय असंज्ञी ही होते हैं। ये प्रथम समयवर्ती कृतयुग्म कृतयुन शिलिल पंचेन्द्रिय जीव संजी भी होते हैं और असंज्ञी भी होते हैं। લઈને ચાવત શુકલેશ્યાવાળા હોય છે. આ કથન સુધીનુ સઘળું કથન આમના सममा ५५ उनसे. 'सेस' जहा बेईदियाण पढमसमइयाण जाव अणतखुत्तो' माडीतुं सघणु थन प्रथम समयमा २२नारा मेन्द्रिय वाना સબંધમાં જે પ્રમાણે કહેલ છે, એજ પ્રમાણે આ સઘળું કથન યાવત્ તેઓ સઘળા પ્રાણે વિગેરે જી અનંતવાર પ્રથમ સમયમાં રહેનારા કૃતયુમ કૃતયુગ્મ રૂપથી ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યા છે આ કથન સુધી કહેવું જોઈએ. પરંતુ જે વિશેષપણુ છે. એટલે કે બે ઈન્દ્રિય પ્રકરણ કરતાં જે જુદાપણું આવે છે, તે 'नवर इथिवेयगा वा पुरिखवेयगा वा नपु सगवेयगा वा सन्निणो असन्निणो' આ સૂત્ર પાઠ દ્વારા અહિયાં બતાવેલ છે. બે ઈન્દ્રિય જી કેવળ એક નપુંસક દવાળા જ હોય છે. જ્યારે આ ત્રણે વેદવાળા હોય છે આ અદક હતા નથી. દ્વીન્દ્રિય જીવ અસંગી જ હોય છે, આ પ્રથમ સમયવતિ કૃતયુગ્મ १०८१

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