Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 651
________________ प्रत्रिका ठीका श०२६ उ. २ सू०१ चतुर्विंशति जीवस्थाननिरूपणम् ६२ पाक्षिके अनन्तरोपपन्नकनारकेषु तृतीयोऽबध्नाद न वनावि भस्पतीत्याकारको भङ्गो ज्ञातव्य इति । 'सव्वेसिं गाणलाई ताई वेव' सर्वेषां नारकादि जीवानां यानि नानात्वानि पापकर्मदण्ड के कथितानि तान्येव नानात्वानि भेदरूपाणि आयुर्दण्डकेsपि ज्ञातव्यानीति । 'सेवं भंते । सेवं भंते! चि' तदेवं भदव ! वदेवं भदन्त इति, हे भदन्त । अनन्तरोपपत्रकारकादीनां पापकर्मादिदण्डके यद् देवानुप्रयेण कथितं तत्सर्वम् एत्रमेत्र सर्वथा सत्यमेवेति कथयित्वा गौतम भगवन्तं बन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थिला संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरतीति | ० १ ॥ S पर्विंशतितमे वन्धिशतके द्वितीयोदेशकः समाप्तः ॥ २६-२।। पाक्षिक अनन्तरोपपन्न मनुष्यो में केवल 'अध्यात् न बध्नाति, भन्त्स्यति' ऐसा एक तृतीय भंग ही होता है । 'सच्चेसि णाणत्ताई 'चेव' जितनी भी समस्त नारकादिक जीवों के पापकर्म के दण्डक में भिन्नताएँ कही गई हैं वे सत्र भेरूप भिन्नताएं आयु दण्डक में भी जानना चाहिये, लेवं भंते । लेवं अंते ! स्ति' हे भदन्त ! अनन्तरोपपन्न नेरक आदि जीवों के पापकर्म आदि दण्डक में जो आप देवानुप्रिय ने कहा है वह सब सर्वथा सत्य ही है -२ इस प्रकार कहकर गौतमस्वामी ने प्रभुश्री को बन्दना की और उन्हें नमस्कार किया, बन्दना नमस्कार कर फिर वे संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये ||१|| ||द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥२६-२॥ 'अनात् न बध्नाति भन्त्स्यति' मा प्रभात रोड त्रीले लगभ होय छे. 'सदेखि णाणत्ताई' ताई चेव' सुधा नार विगेरे कवीने पाय કમના 'ડકમાં જે કાઈ ભિન્નતાએ કહી છે, તે સઘળી ભિન્નતાના ભેદ સહિત આયુક`ના દડકેામાં પશુ સમજવી, सेवं भवे ! सेवते ! त्ति' हे भगवन् व्यनन्तशेषयन्ना नैरयिः विगेरे જીવાને પાપકર વિગેરે કેામાં આપ દેવાતુપ્રિયે જે કથન કર્યુ છે તે સઘળું કથન સથા સત્ય છે હે ભગવન્ આપ દેવાનુપ્રિયનુ કથન આપ્ત હાવાથી સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને વંદના કરી નમસ્કાર કર્યો વદના નમસ્કાર કરીને અને તે પછી તે સયમ અને તપથી આત્માને ભાવિત કરતા થકા પેાતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થયા ાસ પા બીજો ઉદ્દેશ સમાપ્ત ાર૬.૫

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