Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
७७४
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अरुणाभे विमाने अस्ति एकेषां केषांञ्चिद देवानां चत्वारि पत्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता कथिता अत एव तत्थ णं वरुणस्स वि देवरस चत्तारि पलिओनमाई ठिई पण्णत्ता' तत्र खलु सौधर्मे कल्पे अरुणाभे विमाने वरुणस्यापि देवस्य देवतया उत्पन्नस्य चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता । तदनन्तरं वरुणस्य सिद्धयादिकं वक्ति- 'सेणं भंते! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खणं. भवक्खएणं, ठिक्खएणं, जात्र महाविदेहे वासे सिज्झिहिड़, जाव अंतं करेहि ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! स खलु वरुणो देवः तस्मात् देवलोकात् सौधर्मनमें देवरूपसे उत्पन्न हुए हैं । 'तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओant of yoणत्ता' वहाँपर सौधर्मकल्पमें अरुणाभ विमान में कितनेक देवोंकी स्थिति चार पल्योपमकी कही गई है । अतएव 'तत्थ णं वरुणस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता' सौधर्मकल्प में अरुणाभ विमाण में वरुण देवकी भी स्थिति चार पल्योपमकी कही गई है 'से णं भंते ! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं जाव महाविदेहेवासे सिज्झिहिह जाब अंत करेहिइ' हे भदन्त ! वह वरुणदेव, उस देवलोक से सौधर्मकल्पसे आयुके क्षय होते ही, भबके क्षय होते ही, स्थितिके क्षय होते ही यावत् शरीरको छोडकर कहाँ पर जावेगा कहां पर उत्पन्न होगा ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'जाव महाविदेहे वासे सिज्झिeिs, जाव अंत करेहि ' हे गौतस ! वरुणदेव महाविदेह क्षेत्र में
उत्तर- 'तत्थणं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता' હે ગૌતમ! અરુણાભ વિમાનમા કેટલાક દેવાની આયુસ્થિતિ ચાર પલ્યોપમની કહી છે. तेथी 'तत्थणं वरुणस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओ माइ ठिई पण्णत्ता' સૌધર્મો કલ્પના અરુણાભ વિમાનમાં ઉત્પન્ન થયેલા વરુણુદેવની સ્થિતિ પણ ચાર પલ્યોપમ્ની કહી છે
गौतम खाभीने अश्न- से णं भंते! वरुणे देवे ताओ देवलगाओ आउक्खणं, भवक्खएणं, ठिइक्खणं इत्यादि' हे लहन्त! ते वरुणु देवते દેવલાકથી સૌધ કલ્પમાંથી આયુના ક્ષય થતા, ભવના ક્ષય થતાં, અને સ્થિતિને ક્ષય થતાં તે કયા જશે? કયાં ઉત્પન્ન થશે ?
उत्तर- 'जाब महाविदेहवासे सिज्झिहि जाव अत करेहिइ' हे गौतम! વરુણદેવ મહાવિદેહ ક્ષેગમાં મનુષ્ય પર્યાયમાં ઉત્પન્ન થષ્ટને સિદ્ધપદ પામશે અને સમરત

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