Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 853
________________ 1 प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. १० सू. ३ शुभाशुभकर्म फलनिरूपणम् ८२१ ¡ अन्यदा एकदा कदाचित् राजगृहात् नगरात् गुणशिलकात् चैत्यात्-उद्यानात् प्रतिनिष्क्राम्यति=प्रति निर्गच्छति, 'पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ' प्रतिनिष्क्रम्य = निर्गत्य वहि: जनपद विहारं जनपदस्य जनपदे वा विहारः जनपद विहारस्तं विहरति, ' तेणं काळेणं तेणं समएणं रायगिद्दे नामं नयरे गुणसिलए 'चेइए होत्था' तस्मिन् काले तस्मिन् समये खलु रायगृहं नाम नगरं गुणशिलकं चैत्यम् - उद्यानम् आसीत्, 'तर णं समणे भगवं महावीरें अन्नया कयाइ जाव समोसढे, परिसा जाव पडिगया' ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः अन्यदा कदाचित् यावत् - समवसृतः पर्पत् यावत् - भगवतः यह सूत्र कहा है । इसमें कालोदायी अनगार और भगवान महावीर का प्रश्नोत्तर प्रकट किया गया है-प्रसंग इस प्रकार से है'तरणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइं रायगिहाओ णयराओ गुणसिलयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ' इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर किसी एक दिन राजगृहनगर से और गुणशिलक चैत्य से बाहर विहार करनेके लिये निकले । 'पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवय विहारं विहर' वहां से निकल कर वे दूसरे देशों में विहार करने लगे । 'तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे गुणसिलए चेइए होत्था' इस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था, उसमें गुणशिलक नाम का चैत्य था- उद्यान था 'तरणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई जाव समोसढे परिसा जाव पडिगया' एक समय की बात है कि भगवान् महावीर बाहर देशों में विहार करते અને મહાવીર પ્રભુ વચ્ચે જે સવાદ થયા હતા, તે આ સુત્રમાં પ્રકટ કરવામા આવ્યો हे प्रसंग या प्रमाणे मन्येो हतो 'तरण समणे भगव महावीरे अन्नया कयाई रायगिहाओं णयराओ गुणसिलयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ' त्यारणाह अ દિવસે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર રાજગૃહ નગરના તે ગુણુશિલ ચૈત્યમાંથી વિહાર કરીને अडार निउज्या. 'पडिनिक्खमित्ता वहिया जणवयविहारं विहर' त्याथी नीग्जीने तेो। महारना अहेशामा - गाम, नगर सहिभां विहार ४२वा साग्या. 'तेणं कालेणं तेणं समए णं रायगिहे नाम नयरे गुणसिलए चेrर होत्था' ते अणे म સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતુ, અને તે નગરમાં ગુરુશિલક નામનું ચૈત્ય હતુ 'तरण' समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई जाव समोसढे' महारना अद्देशाभां विहार ४२ता ४२तां तेथ्यो ऊ हिवसे ते गुणुशिव शैत्यमा यधार्या परिसा जाक पडिगया' धर्मोपदेश सांभणीने सोनी सला विराट ग તેઓ પાતપેાતાને

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